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________________ नियमोनो आरंभ करे छे. तेने १६ सूत्रमा समाप्त करी ३०३ थी पैशाची भाषाना नियमो २१ सूत्रमा पूर्ण करी ३२५ थी चूलिका पैशाची भाषाना कायदाओ बतावे छे १४ सूत्रोमां तेना खास नियमो आपी अंतमां प्रथम आवी गयेला नियमोनी साक्षी आपी ३३९ थी अपभ्रंश भाषाना नियमोनो आरंभ करे छे. तेने पादनी समाप्ति सुधी पहोंचाडेछे. आ प्रमाणे चारे पादमा प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची, अने अपभ्रंश एम छए भाषाना नियमो रचयिताए सारी रीते बतान्या छे. श्रीहेमचंद्रसूरिना प्राकृतव्याकरणनी बराबरी करे तेवू सविस्तर व्याकरण बीजुं जोवामां आवतुं नथी. यद्यपि षड्भाषा चंद्रिका, प्राकृतप्रकाश, प्राकृतलक्षण विगेरे प्राकृतना नियमो बतावनार अन्य व्याकरणो छे. परंतु ए बधा संक्षेपमा छे. छए भाषानो जे विस्तार श्रीहेमचंद्रसूरिजीना प्राकृतव्याकरणमां मले छे तेवो विस्तार बीजा कोइ व्याकरणमां मलतो नथी एम चोक्कस खात्री पूर्वक हुं कहुं छु एम नही परंतु आजना
SR No.002339
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1935
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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