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________________ होवाथी प्रत्येक अभ्यासी सारी रीते पासे राखी शके अने कंठस्थ करी शके. सवृत्तिक पुस्तक मोटी साइझनु होवाथी विहारमा साधु-साध्वीने साथे राखवा प्राय हरकत पडे तेमज विद्यार्थिओ मोटी साइझने संभाली नथी शकता तेथी आ नानी साइझ पसंद करवामां आवी छे. प्राकृत व्याकरणनी अंते सविस्तर प्राकृत धात्वा. देश अकारादिक्रमथी आप्यो छे. एटले प्रथम प्राकृत धातु पछी संस्कृत धातु अने त्यारबाद प्राकृत सूत्रना सपाद अंक एम एक पृष्ठमां त्रण विभाग आपवामां आव्या छे. आधी अभ्यासीने वधु सुगमता पडशे एम मानवू योग्यज छे. प्राकृतमां अमुक धातुनु रूप आव्युं तो संस्कृतमा कयो धातु होवो जोइए ए जाणवा माटे आ धात्वादेश कोष ( Dictionary ) नी गरज पुरी पाडे छे. आ पुस्तक छपाववामा पूज्यपाद, प्रातःस्मरणीय, केलवणीना महान् प्रचारके, आचार्य श्रीविजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराजना उपदेशथी अमदावाद शाहपुर निवासी शा. डाह्याभाई पोपटलाले घणी योग्य मदद आपी छे ते बद्दल तेमने धन्यवाद आपवो योग्यज गणाय.
SR No.002339
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1935
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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