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ओच्च द्विधाकृगः॥८।१।९७ ॥ वा निझरे ना ॥ ८।१।९८॥ हरीतक्यामीतोऽत् ॥ ८।१।९९ ॥ आत् कश्मीरे ॥ ८।१।१०० ॥ पानीयादिष्वित् ॥ ८।१।१०१॥ उज्जीर्णे ॥ ८।१।१०२॥ ऊहीन-विहीने वा ॥ ८।१।१०३ ॥ तीर्थे हे ॥ ८।१।१०४ ॥ एत्पीयूषा-ऽऽपीड-बिभीतक कीदृशेडशे ॥ नीड-पीठे वा ॥८।१।१०६॥ उतो मुकुलादिष्वत् ॥ ८।१।१०७॥ वोपरौ ॥ ८।१।१०८ ॥ गुरौ के वा । ८।१।१०९॥ इधुंकुटौ ॥ ८।१।११० ॥ पुरुषे रोः॥ ८।१।१११॥