Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Charanvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

Previous | Next

Page 32
________________ २० लुगू भाजन-दनुज-राजकुले जः सस्वरस्य न वा ॥ ८।१।२६७ ॥ व्याकरण-प्राकारा-ऽऽगते क-गोः।८।१।२६८ किसलय-कालायस-हृदये यः ॥८।१।२६९॥ दुर्गादेव्युदुम्बर-पादपतन-पादपीठेऽन्तः ॥ यावत्-तावजीविता-ऽऽवत्तेमाना-ऽवट-प्रा वारक-देवकुलैवमेवे वः ॥ ८॥१॥२७१॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते सिद्धहेमचन्द्राभिधानश ब्दानुशासने अष्टमस्याध्यायस्य प्रथमः पादः ॥१॥ यद्दोमण्डलकुण्डलीकृतधनुर्दण्डेन सिद्धाधिप!, क्रीतं वैरिकुलात् त्वया किल दलत्कुन्दावदातं यशः। भ्रान्त्वा त्रीणि जगन्ति खेदविवशं तन्मालवीनां व्यधादापाण्डौ स्तनमण्डले च धवले गण्डस्थले व स्थितिम्॥१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134