Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Charanvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 61
________________ मेः स्सं ॥ ८ ३ । १६९ ॥ कृ-दो हं॥ ८।३। १७० ॥ श्रु-गमि-रुदि-विदि-दृशि-मुचि-वचि-छिदिभिदि-भुजां सोच्छं गच्छं रोच्छं वेच्छंदच्छं मोच्छं वोच्छं छेच्छं भेच्छं भोच्छं ॥१७१॥ सोच्छादय इजादिषु हिलुक् च वा॥१७२॥ दुसु मु विध्यादिष्वेकस्मिंस्त्रयाणाम् ॥१७३॥ सोहिवा ॥ ८।३ । १७४ ॥ अत इज्जस्विजहीजे-लुको वा ॥ १७५ ॥ बहुषु न्तु ह मो ॥ ८ । ३ । १७६ ॥ वर्तमाना-भविष्यन्त्योश्च ज जा वा ॥१७७॥ मध्ये च स्वरान्ताद्वा ॥ ८ । ३ । १७८ ॥ क्रियातिपत्तेः ॥ ८ । ३ । १७९ ॥ न्त-माणौ ॥ ८।३।१८० ॥

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