Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Charanvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 40
________________ क्ष्मा-श्लाघा-रत्नेऽन्त्यव्यञ्जनात्॥८।२।१०१॥ स्नेहाऽग्योवा ॥ ८।२।१०२॥ प्लक्षे लात् । ८।२।१०३॥ ह-श्री-ही-कृत्स्न-क्रिया-दिष्ट्यास्वित्॥१०४॥ र्श-प-तप्त-वने वा ॥ ८।२।१०५॥ लात् ॥ ८।२।१०६॥ स्याद्-भव्य-चैत्य-चौर्यसमेषु यात्॥१०७॥ स्वप्ने नात् ॥ ८।२।१०८॥ स्निग्धे वाऽऽदितौ ॥ ८।२।१०९॥ कृष्णे वर्ण वा ॥ ८।२।११०॥ उच्चाहेति ॥ ८।२।१११ ॥ पद्म-छद्म-मूर्ख-द्वारे वा ॥ ८।२।११२॥ तन्वीतुल्येषु ॥ ८।२।११३ ॥ एकस्वरे श्वः-स्वे ॥ ८।२।११४ ॥ ज्यायामीत् ॥ ८।२।११५॥

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