Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Charanvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 46
________________ ३४ अलाहि निवारणे ॥ ८।२।१८९॥ . अण णाई नञर्थे ॥ ८।२।१९० ॥ माई मार्थे ॥ ८ । २ । १९१ ॥ हद्धी निदे ॥ ८।२। १९२॥ वेवे भय-वारण-विषादे ॥ ८।२।१९३॥ वेव च आमन्त्रणे ॥ ८।२। १९४ ॥ मामि हला हले सख्या वा॥८।२।१९५॥ दे सम्मुखीकरणे च ॥ ८।२। १९६ ॥ हुं दान-पृच्छा-निवारणे ॥ ८।२।१९७॥ हुखु निश्चय-वितर्क-सम्भावन-विस्मये॥१९८ ऊ गर्दा-ऽऽक्षेप-विस्मय-सूचने ॥८।२।१९९॥ थू कुत्सायाम् ॥ ८।२।२०० ॥ रे अरे सम्भाषण-रतिकलहे॥८।२।२०१॥ हरे क्षेपे च ॥ ८।२। २०२॥ ओ सूचना पश्चात्तापे ॥ ८।२।२०३ ॥

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