Book Title: Prakrit Vyakaranam Author(s): Charanvijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 45
________________ ३३ अव्ययम् ॥ ८ । २। १७५ ॥ तं वाक्योपन्यासे ॥ ८ ॥२ । १७६ ॥ आम अभ्युपगमे ॥ ८।२।१७७ ॥ णवि वैपरीत्ये ॥ ८ ॥ २॥ १७८ ॥ पुणरुत्तं कृत करणे ॥ ८।२। १७९ ॥ हन्दि विषाद-विकल्प-पश्चात्ताप निश्चय-सत्ये ॥ ८।२। १८०॥ हन्द च गृहाणार्थे ॥ ८ । २ । १८१॥ मिव पिव विव व व विअ इवार्थे वा ॥१८२॥ जेण तेण लक्षणे ॥ ८ । २ । १८३ ॥ णइ चेअ चिअच्च अवधारणे ॥८।२।१८४॥ बले निधारण निश्चययोः ॥ ८।२।१८५॥ किरेर हिर किलार्थे वा ॥ ८ । २ । १८६॥ णवर केवले ॥ ८।२।१८७ ॥ आनन्तर्ये णवरि ॥ ८।२।१८८ ॥Page Navigation
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