Book Title: Prakrit Vyakaranam Author(s): Charanvijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 43
________________ शीलाद्यधस्यरः ॥ ८।२। १४५ ॥ क्वस्तुमत्-तूण-तुआणाः ॥ ८॥२।१४६॥ इदमर्थस्य केरः ।। ८ । २ । १४७॥ पर-राजभ्यां क-डिको च ॥ ८ ॥२।१४८॥ युप्मदस्मदोऽज एच्चयः॥ ८।२।१४९॥ बतेवः ।। ८ । २ । १५० ।। सबोङ्गादीनस्यकः ।। ८ । २ । १५१ ॥ पथो णस्यकट ।। ८ । २ । १५२ ॥ इयस्याऽऽत्मनो णयः ।। ८ । २। ५५३ ॥ त्वस्य डिमा-त्ती वा ॥ ८।२।१५४ ॥ अनकोठात् तैलस्य डेल्लः ॥ ८।२।१५५ ॥ यत्तदेतदोऽतोरित्तिअ एतल्लक् च ॥१५६॥ इदंकिमश्च डेत्तिअ-डेत्तिल डेदहाः ॥१५७॥ कृत्वसो हुत्तम् ॥ ८।२। १५८ ॥ आल्विल्लोल्ला-ऽऽल-वन्त-मन्तेत्तर-मणा मतोःPage Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134