Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Charanvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 10
________________ समर्थ अर्ध मागधीना प्रोफेसरो ( Professors) मुक्तकंठे विना संकोचे उच्चारी रह्या छे. दिवसे दिवसे प्राकृत-मागधीनो अभ्यास वधु प्रमाणमा प्रसरतो जाय छे. ए बहुज इच्छनीय छे. अभ्यासिओने थोडामां वधु ज्ञान मले ए हिसाबे श्रीहेमचंद्राचार्य मूल सूत्रोमां एवा सरस नियमो बतावी आप्या छे के अभ्यासिओने अल्प प्रयासे प्राकृत-मागधीनो बोध मूल सूत्रो अने तेना नियमो कंठाग्र करी लेवाथी विशेष ज्ञान थइ शके एम छे. अने तेथीज आ मूल सूत्रो छपाववा प्रयत्न आदर्यों छे. घणा सूत्रोतो वृत्तिनी अपेक्षा राखताज नथी. पूर्वापरनो क्रम-अनुवृत्ति ध्यानमा रहे तो पछी वृत्तिनी जरुर विशेषतया जणाती नथी. पूना, पाटण, सूरत विगेरे स्थलोथी सवृत्तिक प्राकृतव्याकरण बहार पडयुं छे. परंतु मूल सूत्र रूपे हजु सुधी बहार न पडेल होवाथी आ केवल सूत्र रूपेज प्रगट करवा यत्न कर्यो छे. अर्ध मागधीना अभ्यासी साधु-साध्वी अथवा गृहस्थ-विद्यार्थी विगेरेने विशेषतया लाभ थाय ए माटे नानामां नानी साइझ (Pocket Sige) राखी छे. नानी साइझ

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