Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 7
________________ हमारा हृदयोद्वार हमारा हृदय आनन्द और उल्लास से नृत्य कर रहा है। हमारा अल्प प्रयास अनेकों के जीवन का प्रकाश बन जाएगा, इसकी हमने कल्पना भी कहाँ की थी ? 'मुक्तिकिरण' पाक्षिक (गुजराती) का शुभारम्भ हुआ, तब से ही जैन-जैनेतर वर्ग की. ओर से तथा पूज्य श्रमण-श्रमणी भगवन्तों की ओर से मिलनेवाले शुभ सन्देश हमारे उर्मियों को आनन्दित तथा उल्लसित कर रहा है। जिसके कारण आज हम श्रुतसाहित्य के प्रकाशन में भी धीरे-धीरे कदम बढ़ाते जा रहे हैं। वि.सं. २०६३ में चन्दनबाला - वालकेश्वर में पू. आ. श्री विजयश्रेयांसप्रभसूरीश्वरजी महाराज की दस दिनों की स्थिरता हुई, उस समय प्रभु श्री महावीरदेव की छत्रछाया में 'प्रभुवीर अने उपसर्गो' नामक गुजराती प्रवचनमाला प्रारम्भ हुई, जिसमें प्रभु को जिस भव में समकित प्राप्त हुई, उस नयसार के भव से सत्ताईस भवों का संक्षिप्त वर्णन, प्रभु वीर का अन्तिम भव तथा उपसर्गों के समूह में ही 'संगम की एक रात्रि के बीस उपसर्ग' विशेष प्रकार से वर्णित किए गए। जो मुक्तिकिरण के गत वर्ष के चौबीस अंकों में प्रकाशित हो चूके हैं। उन्हें ही 'प्रभु वीर एवं उपसर्ग' के नाम से मुक्तिकिरण हीन्दी ग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्रकाशित किया जा रहा है। पूज्यों की कृपा तथा आपलोगों का सहयोग ही हमारी मूल सम्पत्ति है । श्री जिनाज्ञा के विरुद्ध या पूज्यश्री के आशय के विरुद्ध कुछ भी प्रकाशित हुआ हो, तो उसके लिए मिच्छामि दुक्कडम् - राजेशभाई पादरावाले पं. परेशभाई

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