Book Title: Paschattap Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 4
________________ पश्चात्ताप अपनी बात से ही नहीं, कुछ-कुछ यहाँ-वहाँ से भी लिया गया है। जैसे धोबीधोबिन का प्रसंग रविषेणीय पद्मपुराण में नहीं है; तथापि यह लोक का बहुचर्चित प्रसंग है। बात उस समय की है जब रावण को परास्त कर राम सीता को लेकर अयोध्या वापस आ जाते हैं और वर्षों तक सीताजी के साथ सुखपूर्वक रहते हैं। इसी बीच सीताजी गर्भवती हो जाती हैं। ____ इसी समय धोबी-धोबिन के नाम से लोक में इस बात पर अंगुलि उठाई जाने लगती है कि छह मास तक रावण के यहाँ रही हुई सीता को राम ने अपने घर में रख लिया है। इसका अनुकरण करके और लोग भी ऐसा ही करेंगे। इस लोकापवाद के कारण श्रीराम ने कृतान्तवक्र सेनापति के द्वारा यात्रा के बहाने सीता को भयंकर वन में छुड़वा दिया। वहाँ पुण्डरीकपुर के राजा वज्रजंघ ने सीता को धर्म की बहन बनाकर अपने घर में आश्रय दिया। वहीं पर लव-कुश का जन्म हुआ। जब लव-कुश युद्धविद्या में पारंगत और तरुणावस्था को प्राप्त हुए, तो एक दिन नारद ऋषि ने उन्हें राम-लक्ष्मण जैसे प्रतापी होने का आशीर्वाद दिया और उनके आग्रह पर उन्हें रामकथा सुनाई। सीता के त्याग का प्रसंग सुनकर वे राम-लक्ष्मण से युद्ध के लिये तैयार हए । युद्ध हआ; पर समय पर नारद ने राम को बताया कि ये सीता से उत्पन्न तुम्हारे ही सुयोग्य सुपुत्र हैं। ___इसप्रकार उनका स्नेह-मिलन हुआ। तत्पश्चात् सीताजी को भी बुलाया गया, पर राम ने उन्हें स्वीकृत करने से इन्कार कर दिया १. उक्त सन्दर्भ में विशेष जानकारी के लिये प्रयाग विश्वविद्यालय की हिन्दी प्रकाशन परिषद् से प्रकाशित फादर कामिल बुल्के के शोधप्रबन्ध “रामकथा : उत्पत्ति और विकास' के पृष्ठ ६९३ देखें। तथा अपनी पवित्रता साबित करने को कहा। परिणामस्वरूप अग्निपरीक्षा हुई, जिसमें सीताजी सफल हो गईं। इसके उपरान्त सीता घर में रहने को राजी नहीं हुईं। यद्यपि राम ने उन्हें बहुत मनाया; पर वे दीक्षा लेकर साध्वी बन गईं। ___ तत्पश्चात् राम के हृदय में जो मंथन चला, उसी को प्रस्तुत किया गया है - इस कविता में। यह राम के उद्वेलित हृदय का चित्रण करनेवाली एक लम्बी कविता है। राम और सीता पर न जाने कब से लिखा जाता रहा है और कब तक लिखा जाता रहेगा। विभिन्न लेखकों ने उन्हें विभिन्न रूपों में देखा, परखा और प्रस्तुत किया है; इसप्रकार न मालूम राम कितने रूपों में प्रस्तुत हो गये हैं - वाल्मीक के राम, तुलसी के राम आदि। मैंने इस काव्य में कुछ कहने की कोशिश की है, आशा है, वह मूल संदेश आप तक पहुँचेगा। यह काव्य सीता की अग्निपरीक्षोपरान्त सीता के दीक्षा ले लेने के पश्चात् राम के मन में हुए ताप (संताप) का प्रस्फुटन है, इसलिये पश्चात् + ताप अर्थात् पश्चात्ताप है। मेरा सोचना यह है कि आखिर बात तो यही थी न कि जब धोबिन बलात् पर घर में कुछ दिन रहकर वापस आई, तो धोबी ने उसे घर में रखने से इन्कार कर दिया। महासती सीता का उदाहरण देने पर जब उसे घर में रख लिया गया तो समाज ने धोबी का बहिष्कार कर दिया। अब उसने राम की नजीर दी - कि उन्होंने भी तो रावण के यहाँ रही सीता को घर में रख लिया है, फिर मेरा बहिष्कार क्यों?Page Navigation
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