Book Title: Paschattap Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 3
________________ पश्चात्ताप अपनी बात उनका यह उत्तर सुनकर मैं मौन रहा। वैसे तत्त्ववेत्ता डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल' (अभिनंदन ग्रंथ) जिसके दो संस्करण छप चुके हैं तथा जो डबल डेमी साइज के आकार में ७०० पृष्ठ का है, जिसमें उनकी प्रकाशित-अप्रकाशित साहित्यिक कृतियों पर अनेकों लेख हैं। वह विशाल ग्रन्थ वर्तमान में बिक्री विभाग में उपलब्ध भी है। उक्त ग्रंथ के संपादन के कार्यकाल में मैंने उनके सभी अप्रकाशित साहित्य को अच्छी तरह देखा है। ___इस काव्य का स्वरस कुछ अलग ढंग का ही है। पुण्य-पाप के फल की बात तो इसमें दी ही गई है, कुछ छन्दों में अध्यात्म की भी चर्चा है। रसिक पाठक इस साहित्यिक कृति का रसास्वादन करें एवं अपने मन की प्रतिक्रिया मेरे पते पर पत्र या फौन द्वारा अवश्य भेजें। उसी समय लिखी गईं और भी अनेक कृतियाँ इसीप्रकार पड़ी हुई हैं। इस कृति पर पाठकों की प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर उन्हें प्रकाशित करने के बारे में सोचेंगे। ___इस कृति को आप तक अत्यल्प मूल्य में पहुँचाने में सहयोग जिन दातारों ने दिया है, उनकी सूची इसी में अन्यत्र प्रकाशित है; उन सबको हार्दिक धन्यवाद के साथ-साथ प्रकाशन विभाग के प्रभारी अखिल बंसल को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने इसके सुन्दरतम मुद्रण की व्यवस्था की है। लेखक के महत्वपूर्ण उपलब्ध प्रकाशनों की सूची भी संलग्न है। उनके विभिन्न विषयों पर हुये प्रवचनों के केसैट और सी.डी. भी उपलब्ध हैं। - ब्र. यशपाल जैन, एम.ए. प्रकाशन मंत्री, श्री टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर (राज.) अपनी बात भारतीय जनमानस में राम और सीता की जोड़ी आज भी तिल में तेल के समान रमी हई है। विपत्तियों में भी धैर्य न खोनेवाली सीता और विषम परिस्थितियों में भी जन-जन के मन में समा जाने वाले राम का जीवन मेरे हृदय को बचपन से ही आन्दोलित करता रहा है। यह काव्य जन-जन के मन में समाये राम के कोमल हृदय के एक कोने में झाँकने का प्रयास है। मैं नहीं जानता कि इसमें मुझे कितनी सफलता मिली है; पर मेरा हृदय यह चाहता है कि लोगों के मन में राम की छवि एक कठोर शासक के रूप में नहीं, अपितु मानवीय संवेदनाओं से सम्पन्न, कोमल, सहृदय सम्राट रूप में प्रतिष्ठित हो। इसीप्रकार सीता का स्वरूप भी मानव-समाज द्वारा प्रताड़ित असहाय नारी के रूप में नहीं, अपितु विपत्तियों के बीच भी संतुलन न खोनेवाली, तत्त्वज्ञान से सम्पन्न, उस नारी के रूप में प्रतिष्ठित हो कि जो देवी के साथ-साथ मानवी भी है, अनुगामिन के साथ-साथ वैरागिन भी है। अधिक क्या कहूँ ? यह काव्य मेरे हृदय में बसे राम का प्रकटीकरण है। यह राम पूर्णतः मेरे राम हैं; उन्हें किसी धार्मिक विचारधारा विशेष में आबद्ध राम के रूप में नहीं, मेरे मानस के मुक्त आकाश में विचरण करनेवाले राम के रूप में देखा जाना चाहिये। ध्यान रहे, यह कृति मेरी रचना है, केवल लेखन कार्य नहीं। तात्पर्य यह है कि मैंने इसे कहीं से उठाकर हूबहू प्रस्तुत नहीं कर दिया है; इसमें मेरा चिंतन है, मंथन है। ___यद्यपि यह मेरे राम हैं, तथापि इसके कथाभाग में आचार्य | रविषेण के पद्मपुराण को आधार बनाया गया है; पर सब कुछ वहाँ Daa ROPage Navigation
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