Book Title: Paschattap Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 2
________________ प्रकाशकीय प्रथम संस्करण : ५ हजार (२५ मई, २००६) द्वितीय संस्करण : ५ हजार (१२ जुलाई, २००६) तृतीय संस्करण : ५ हजार (२५ मार्च, २००७) योग : १५ हजार विषय सूची १. अपनी बात २. दो शब्द |३. पश्चात्ताप ४. मनीषियों की दृष्टि में - ४० ५. पश्चात्ताप : एक समीक्षात्मक अध्ययन Som मूल्य : सात रुपये प्रकाशकीय लगभग साढ़े पाँच दशक पहले लिखी गई डॉ. भारिल्ल की नवीनतम कृति ‘पश्चात्ताप' नामक काव्य को प्रकाशित करते हुए हमें विशेष प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इस कृति का प्रकाशन हो - अनेक वर्षों से ऐसा मेरा भाव था। यह भावना भी विशिष्ट बलवती थी कि डॉ. भारिल्ल इसे एकबार फिर से देखकर आवश्यक परिवर्द्धन व परिवर्तन भी करें। ऐसा सहज योग अब बन पाया है कि डॉ. भारिल्ल ने इस काव्य को बारीकी से आद्योपान्त देख लिया और कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन भी कर दिये। ____ मैं चाहता था कि इसके प्रकाशन के पूर्व इसके सम्बन्ध में मनीषियों का अभिप्राय प्राप्त करना चाहिये; अतः प्रेसकॉपी तैयार कर कुछ मनीषियों के पास भेजी गई। प्राप्त सभी अभिप्राय अनुकूल ही रहे, जो कृति के अन्त में दिये गये हैं। उन सभी से प्रोत्साहन पाकर हम इसे प्रकाशित कर रहे हैं। ___प्रो. संजय ने इस कृति पर एक समीक्षात्मक विस्तृत लेख लिखा है, जिसे हम अन्त में दे रहे हैं। डॉ. भारिल्ल का अप्रकाशित पुराना साहित्य; जिसमें महाकाव्य, कहानियाँ आदि हैं; वह सब मेरे पास सुरक्षित हैं। यद्यपि मैंने डॉ. साहब से इस अप्रकाशित साहित्य को शीघ्र ही प्रकाशित करने का अनेक बार आग्रह किया; तथापि मुझे उनका उतना उत्साह नहीं दिखा, जितना मुझे है। ___ एक बार मैंने विशेष आग्रह के साथ कारण पूछा तो मुझे उत्तर मिला - "उस साहित्य को एकबार मनोयोगपूर्वक सूक्ष्मता से देखने के बाद ही प्रकाशित करना चाहिये। साहित्य प्रकाशन में शीघ्रता करना मुझे पसंद नहीं।" प्रकाशकीय (तृतीय संस्करण) सुप्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान तत्त्ववेत्ता डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल की नवीनतम कृति ‘पश्चात्ताप' का अल्पकाल में ही यह तृतीय संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है। भगवान श्रीराम के संवेदनशील हृदय की मानसिकता का सजीव चित्रण करने वाली इस कृति का दस माह की अल्प अवधि में ही यह ५ हजार का तृतीय संस्करण प्रकाशित होना गौरव का विषय है। विशेष जानकारी के लिए पुस्तक के प्रथम संस्करण का प्रकाशकीय दृष्टव्य है। इस संस्करण की कीमत कम करने में हमें जिन महानुभावों का आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। महत्वपूर्ण कृति के लेखन हेतु लेखक के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। - ब्र. यशपाल जैन टाइपसैटिंग: त्रिमूर्ति कंप्यूटर्स ए-४, बापूनगर, जयपुर मुद्रक : प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड | बाईस गोदाम, जयपुरPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 43