Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 15
________________ पश्चात्ताप पश्चात्ताप (७९) नारी क्या-क्या न कर सकती, करता हो जिसको नर महान। दोनों होएँ जब कर्मवीर, तब जग होता आदर्शवान ।। (७४) अब तक तो समझा था मैंने, नारी ही होती परित्यक्त। अन्याय देख कर पतिवर का, हो जाती वह नर से विरक्त ।। (७५) नारी का यह वैराग्य प्रेम, कर देता नर का बहिष्कार । जिसको जग कहता है अबला, सबला हो जाती शील धार ।। नर जीता हरदम नारी से, रखता है उस पर स्वाधिकार । कर्तव्यमुखी नारी पाकर, कर्तव्यविमुख नर गया हार ।। (७७) जब सीता को मैं समझाता, उस दिन की याद मुझे आती। पर आज देखता हूँ उलटा, है सीता मुझको समझाती ।। (७८) नर नारी से पैदा होता, उससे पाता है नेह मान । पर अहंकार से भरा स्वयं, जगजननी का करतापमान ।। नारी कोमल को कोमल है, पर निष्ठुर को निष्ठुर महान । नर के अनुरूप रही नारी, जाना मैंने नारी विधान ।। (८१) राजा की नारी रानी है, तो महाराजा की महारानी। नट की नारी को नटी कहें, मिश्रा की नारी मिसरानी।। (८२) दर्जी की नारी दर्जिन है, तो सेठ की नारी सेठानी। ठाकुर की नारी ठकुराइन, मैतर की नारी मितरानी।। (८३) मुझ से निर्मोही की रानी, होवेगी निश्चय निर्मोही। सीता का है अपराध नहीं, नर होता जो नारी सो ही।। १. उपमा

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