Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 37
________________ पश्चात्ताप एक समीक्षात्मक अध्ययन शब्दों का प्रयोग किया है, वहाँ भाषा कठिन हो गई है। जैसे - शोकानल, अग्निपरीक्षा, जनकसुता, सगद्गद्, सीतेश, अग्निशिखा, वणिकवृत्ति आदि शब्दों का प्रयोग, किन्तु संपूर्ण काव्य में ऐसे स्थल बहुत कम आए हैं। पश्चात्ताप' की चित्रात्मकता भी प्रशंस्य है; क्योंकि इसमें कल्पना के साथ समर्थ और सशक्त भाषा का भी योग रहता है। चित्रात्मकता के साथ यदि नादात्मकता हो तो सोना और सुहागा का मणिकांचन संयोग होता है। सीता के जाने के अवसर पर संपूर्ण प्रजाजन की आँखें भीग गईं तो राम निष्प्रह कैसे रह सकते थे, राम भी रो पड़े - जन जन की आँखें भर आईं, अर रोम-रोम हो गए खड़े। सीतेश प्रभु की आँखों से, ___टपटप दो आँसू टपक पड़े ।।४२ ।। राम के आँखों से आँसू गिरते ही भाषा भावानुकूल हो जाती है। कवि उपमाओं की झड़ी लगा देता है, जैसे कि कोई स्रोत वह निकला हो - वे आँसू थे या मुक्तामणि, या राम हृदय-परिचायक थे। या प्रेमलता सिंचक जल थे, घनश्याम राम के द्रावक थे ।।४३ ।। कवि ने अपनी बात को प्रभावी बनाने के लिये पुनरुक्ति का प्रयोग कई बार किया है, जैसे - महा अन्याय-महा अन्याय, सीता धन्या-सीता धन्या । चूँकि कवि की भाषा सहज है; अतः कतिपय भाषाई मुहावरे भी काव्य के हिस्सा बने हैं। उदाहरण के लिए - (१) शील ने रखी सती की लाज । (२) मनीषा करती तर्क-वितर्क। (३) न्याय है मुझे आज सपना। (४) आज उसने मुखड़ा मोड़ा। इसीप्रकार 'कौआ कोसे यदि शतक बार, तो नहीं पशु मर जाएँगे; जैसी कहावतें प्रयुक्त हैं। राम के व्यक्तित्व को प्रामाणिक बनाने के लिए तत्सम प्रधान भाषा में कतिपय सुभाषित, नीतिवचन दिए हैं, जिनमें कवि के मौलिक विचार व्यक्त हुए हैं - (१) किसी को कैसे दे वह दण्ड, सत्य की परख नहीं है जिसे । बिठा कैसे देते हैं लोग, न्याय के सिंहासन पर उसे ।। (२) विगत भव में जो बाँधे कर्म, वही देते फल इस भव में। (३) करे सो भरे यही है सत्य । (४) सभी कुछ निश्चित हैं संयोग। (५) जनता को चाहे खुश करना। तो न्याय नहीं करता जन है। (६) जिसको है न्याय नहीं आता, वो अधिकारी ना शासन का। (७) जन नायक तो उसको कहिये, जो न्याय तुला पर तौल सके। जनता के मन को ना देखे, बस न्याय नेत्र ही खोल सके।। यदि न्याय पक्ष अपना सच हो, चाहे जनगण विद्रोह करे। चाहे सुमेर भी हिल जाए, पर नहीं न्याय से वीर फिरे ।।

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