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पश्चात्ताप
एकसमीक्षात्मक अध्ययन
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(९) अब तक तो समझा था मैंने,
नारी ही होती परित्यक्त। अन्याय देख कर पतिवर का,
हो जाती वह नर से विरक्त ।। (१०) नारी का यह वैराग्य प्रेम,
कर देता नर का बहिष्कार। जिसको जग कहता है अबला,
सबला हो जाती शील धार ।। (११) नारी कोमल को कोमल है,
पर निष्ठुर को निष्ठुर महान । नर के अनुरूप रही नारी,
जाना मैंने नारी विधान ।। (१२) नारी है कितनी त्याग शील,
नररत्नों को पैदा करके। जो उसको देवे त्रास महा,
चल देती उसको दे करके ।। अलंकारिकता की दृष्टि से कवि ने प्रचलित सभी अलंकारों का प्रयोग किया है; पर उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, उदाहरण, पुनरोक्ति, समासोक्ति आदि अलंकारों का विशेष प्रयोग किया। उदाहरण के लिए हम उपमा के कतिपय प्रयोग देख सकते हैं - सब सूना-सूना लगता है,
प्रासाद खण्डहर से लगते । अमृत भी विष सा लगे आज,
सब भोग व्याल सम हैं डसते ।।१०१।। अथवा संदेह का प्रयोग देखें - वे आँसू थे या मुक्तामणि,
या राम हृदय परिचायक थे।
या प्रेमलता के सिंचक जल थे,
घनश्याम राम के द्रावक थे ।।४३।। उत्प्रेक्षाविगत भव में जो बाँधे कर्म,
वही फल देते इस भव में। किया होगा कोई अपराध,
भयंकर मैंने गत भव में ।।२०।। असम-अलंकार, जहाँ उपमेय के समान किसी उपमान का निषेध किया जाए, असम अर्थात् जिसके समान कोई अन्य नहीं। साकेत प्रजा के गूंजे स्वर, सीता-सी नहीं और अन्या।।१२४ ।।
अथवा न रामचंद्र-सा राजा भी,
अब तक जगती में हुआ अन्य ।।१२६ ।। इसीप्रकार स्मरण अलंकार जहाँ पूर्व घटना का स्मरण किया जाता है - यथा - उदर में था लवकुश जोड़ा,
तभी निर्जन वन में छोड़ा।।१६।। दृष्टान्त अलंकार में बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव होता है। उदाहरणार्थ - सज्जन सज्जन ही रहें किन्तु,
हम ही दुर्जन कहलायेंगे। कौआ कोसे यदि शतक बार,
तो नहीं पशु मर जाएँगे ।।८९ ।। इसीप्रकार विभावना - कारण होने पर भी कार्य का न होने का प्रयोग दृष्टव्य है -