Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 41
________________ पश्चात्ताप एकसमीक्षात्मक अध्ययन करते हैं। किसी सपाट कथानक के अभाव में कृति आधुनिक प्रबन्ध - काव्य सृजन की श्रेणी में आ जाती है। संवादों का प्रयोग, सत्वरता, नैरन्तर्य, मंगलाचरण, नान्दीपाठ जैसे प्रयोगों ने नाटकीयता पैदा कर दी है। नायक राम का चरित्र पौराणिक ऐतिहासिक न होकर मानवीय है और यथार्थ की भूमि पर चित्रित है। वह धर्म, समाज, राजनीति जैसे विषयों से संघर्ष कर प्रश्नाकुल होता है और निष्कर्ष का नवनीत भी निकाल लेता है। इसीप्रकार कथानक का आधार पौराणिक भले ही हो पर, इसके अर्थ-संदर्भ बिलकुल नए और आज के समय से सवाल करते दिखते हैं। इन अर्थों में खण्डकाव्य पूर्णतः आधुनिक है। (८) पश्चात्ताप : प्रतीक-सृष्टि - ___ पश्चात्ताप के संदर्भ में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि रचनाकार का उद्देश्य राम के जीवन के किसी अंश पर विचार करना था या राम और सीता की कथा के माध्यम से जिस धर्म के सिद्धान्तों को अपनी आस्था के साथ आत्मसात किए रहा, उसका प्रकटीकरण है। हिन्दी साहित्य के मध्यकाल में जायसी ने 'पद्मावत' के अंत में एक कड़वक में 'पद्मावत' के प्रतीकार्थों को स्पष्ट करते हुए चुनौती दी थी कि 'बूझ सके तो बूझहु पारहु' अर्थात् समझ सको तो समझो। ___ इसीप्रकार आधुनिक युग में प्रसाद ने कामायनी की भूमिका में 'मनु को मन का और श्रद्धा को काम का प्रतीक बताते हुए रूपक विधान को स्पष्ट करने की चुनौती दी थी। यह चुनौती आलोचना बुद्धि के लिए चारे का काम करती रही और वे नए रूपकों को उद्घाटित करते रहे। आलोच्य कृति के अंत में कवि ने एक छन्द के माध्यम से राम और सीता के प्रतीकार्थ को स्पष्ट किया है - अरिहंत राम के परमभक्त, हम आत्मराम के आराधक । जिनवाणी सीता के सपूत, भगवान आत्मा के साधक।।१३०।। यहाँ जिनवाणी रूपी सीता के साथ अन्याय करने वाला, उसके स्वरूप, उसकी पवित्रता को न समझने वाला अपराधी-संसार के बंधनों में बँधा हुआ अपराधी राम बहिरात्मा है। इसीप्रकार सीता के दीक्षोपरांत अपनी भूल को समझने वाला और पुनः उस भूल को न दोहराने की प्रतिज्ञा करने वाला, स्थितिप्रज्ञ राम अन्तरात्मा है। जो यह कहता है - सीता का कुण्ड मही में था, मेरा होगा मनमंदिर में। उसमें था सूखा काष्ठ भरा, मेरा तन ही होगा इसमें ।।११०।। और अंत में जहाँ साकेत की प्रजा और पृथ्वीतल के रोम-रोम में बसा राम का परमात्मरूप है, जो सभी प्रकार के अन्तर्बाह्य संघर्षों से विरत है। इसप्रकार मुझे लगता है ‘पश्चात्ताप' काव्य के माध्यम से कवि ने जिनवाणी माँ के उद्बोधन के द्वारा आत्मविकास की प्रक्रिया का उद्घाटन किया है। और अन्त में - ‘पश्चात्ताप' खण्ड काव्य के लेखक डॉ. भारिल्ल मेरे गुरु हैं, मार्गदर्शक हैं; अतः स्वाभाविक रूप से उनकी ख्याति के अनुरूप दर्शन और अध्यात्म को तो उनके मुख से अनेकों बार सुना एवं समझा था, साहित्य के क्षेत्र में उनके दखल को इस कृति के माध्यम से पहली बार अनुभव किया। लिहाजा पहली नजर में ही मुझे यह रचना बेहद आकर्षक लगी। मुझे लगा कि यह उनकी रचनात्मकता, विशेष रूप से काव्य सृजन

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