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पश्चात्ताप
पश्चात्ताप
भारतवासी गुणग्राही हैं,
वे अवगुण अनदेखी करते । है यही वजह कि वे हरदम,
सबके सद्गुण ही अपनाते ।।
अरिहंत राम के परमभक्त,
हम आत्मराम के आराधक। जिनवाणी सीता के सपूत,
भगवान आतमा के साधक ।।
(१२४) साकेत प्रजा के गूंजे स्वर,
सीता-सी नहीं और अन्या। हे जगत्पूज्य सीता धन्या, सीता धन्या सीता धन्या ।।
(१२५) सीता देवी सी शीलवती,
धरती पर कोई नहीं अन्या। सीता धन्या सीता धन्या, सीता धन्या सीता धन्या ।।
(१२६) न रामचन्द्र-सा राजा भी,
अब तक जगती में हुआ अन्य। जय रामचन्द्र से राजा की, शत बार धन्य शत बार धन्य ।।
(१२७) इस पृथ्वीतल की जनता के,
हैं रोम-रोम में रमे राम । रग-रग में समाहित हैं सीता, पर कहते हैं सब राम-राम ।।
(१२८) घटनायें बासी हो जातीं,
पर कथा नहीं होती बासी। इस दुविधा से कब उबरेंगे,
कर्तव्यनिष्ठ भारतवासी ।। १. अयोध्या
भगवान आतमा के साधक,
ध्रुवधाम आतमा के साधक। निज आतम में ही रहें लीन,
है यही भावना भवनाशक ।।