Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 34
________________ ६६ पश्चात्ताप कवि का विचार है कि किसी निरपराध को दण्ड देना न्याय नहीं, अन्याय है। न्याय तो सत्य का पक्षधर होता है; वह अन्याय, असत्य, जनमत, बहुमत किसी के सामने झुकता नहीं है और न्यायाधीश भी ऐसा होना चाहिए जिसे नीर-क्षीर विवेक हो अर्थात् सत्य की परख हो । 'किसी को कैसे दे वह दण्ड, सत्य की नहीं परख जिसे ।' इसीप्रकार जननायक अर्थात् नेता भी ऐसा चुनना चाहिए जो अन्याय और असत्य को प्रश्रय न दे अर्थात् चुनाव जनता के द्वारा किया जाता है, जनता की अक्षमता या समता का पता इस बात से चल जाता है कि वह कैसे नेता का चुनाव करती है। प्रजाजन में कैसा अज्ञान, भरा है हे मेरे भगवान । चुने चाहे जिसको नेता, नहीं जो उचित दण्ड देता ।। १२ ।। लगता है स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही भारतीय राजनीति में विकृत चरित्रों का समावेश होना शुरू हो गया था, अन्यथा लेखक ऐसा नहीं लिखता । जो बातें तब के समय में लागू थीं, वह आज की विकृत राजनीति के संदर्भ में तो पूरी तरह लागू हैं ही। भारतीय राजनीति के बाद लेखक की दृष्टि में दूसरा विषय नारी जाति के प्रति पुरुष जाति की बढ़ती असंवेदनशीलता है। नारी का व्यक्तित्व आखिर है क्या? क्या वह पुरुष की अनुचर मात्र है ? जिसे सौभाग्यवती बनाया जाता है, उसका सौभाग्य पुरुष की दासता में छिपा है ? विश्व की आधी आबादी क्या नारी होने के दर्द एवं त्रासदी झेलने के लिए अभिशप्त है? क्या नारी का स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं है ? वह आनुषांगिक है ? अनिवार्य न होकर नैमित्तिक है? या विषय मात्र है? जबकि पुरुष विषयी है । 'एक समीक्षात्मक अध्ययन ६७ इसप्रकार नारी को लेकर हमारे पास स्वीकृत अवधारणाओं की लम्बी फेहरिस्त है, जिनके अनुसार हम अपने नारी विषयक आचरण संबंधी नियमों का निर्धारण करते हैं। चूँकि नारी के व्यक्तित्व और चरित्र का नियामक, निर्णायक पुरुष ही होता है; अतः वही उसके चरित्र के सत् की घोषणा करता है। यहाँ राम सम्पूर्ण भारतीय पुरुष समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और वही सीता के अस्तित्व को परिभाषित करते हैं। राम ने सीता को अज्ञातवास (जनशून्य स्थानवास) दे दिया, वह भी धोखे से । यह कहकर कि तीर्थों की वंदना के लिए भेजा जा रहा है। क्यों छोड़ा? लोकापवाद के भय से तथा स्वयं को आदर्श राजा साबित करने के लिए। वह भी ऐसी स्थिति में जब सामान्यतः कोई भी पति अपनी पत्नी के प्रति थोड़ा भी निर्मम नहीं होता है, कोमल होता है अर्थात् सीता को दीर्घकालीन दाम्पत्य जीवन का फल मातृसुख प्राप्त होने जा रहा था । वह | होनेवाले शिशुओं के साथ सपनों में खोई हुई थी कि अचानक उसे धोखे से जंगल के लिए रवाना कर दिया जाता है। सीता अवाक् रह जाती है। कवि ने लिखा है कि सीता को जंगल में भेजकर राम ने सीता को दण्ड दिया था, लेकिन सवाल यह है कि दण्ड दिया किस अपराध के लिए था? उस अपराध के लिए, जिसे सीता ने किया ही नहीं था । वन में सीता का अपहरण हुआ, क्या यह सीता का कसूर था? सीता यदि रावण के घर छह महीने रही तो क्या अपनी इच्छा से ? वन में उसका अपहरण हुआ, इसमें उसका अपराध न था । वह लंका में छह मास रही, पर मन तो उसका साथ न था ||४६ ॥ बल्कि अपराधी तो स्वयं राम ही थे कि सीता की रक्षा के दायित्व का निर्वहन नहीं कर सके। सीता को वापस लाने में छह माह का समय लगा दिया।

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