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पश्चात्ताप
एक समीक्षात्मक अध्ययन
यहाँ राम अपने चरित्र की कमजोरी को स्वीकार रहे हैं - सीता सतीत्व में शंका थी,
___तो क्यों उसको मैं घर लाया। सीता यदि परम पुनीता थी,
तो क्यों जनमत से घबराया ।।५४ ।। दूसरी बात यह भी है कि यदि धोबिन ने सीता को अपने बचाव के लिए प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया तो क्या गलत किया? ऐसा तो सभी करते हैं। सच तो यही है कि शंका तो राम के मन में थी, धोबिन तो बहाना थी, अन्यथा एक धोबिन अयोध्या की सम्पूर्ण प्रजा का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकती है? धोबिन एक व्यक्ति या एक परिवार है, सम्पूर्ण प्रजा नहीं।
राम के पश्चात्ताप' के इस अवसर को कवि ने अपनी नारी भावना के रूप में प्रस्तुत किया है। सीता को खोकर राम सम्पूर्ण नारी जाति के प्रति संवेदनशील हो उठते हैं। कविता पौराणिक युग से बाहर आ जाती है - अब तक तो समझा था मैंने,
नारी ही होती परित्यक्त । अन्याय देख कर पतिवर का,
__हो जाती वह नर से विरक्त ।।७४ ।। नर नारी से पैदा होता,
उससे पाता है नेह मान । पर अहंकार से भरा स्वयं,
जगजननी का करतापमान ।।७८ ।। राम के मन में नारी की महिमा का बोध इतना अधिक होता है कि वह प्रेम, धैर्य, त्याग, मातृत्व, कोमलता आदि की मूर्ति दिखाई देती है। जैसे निराला के तुलसीदास को रत्नावलि के द्वारा प्रतिबोधित करने पर वह साक्षात् दुर्गा, अम्बा, सरस्वती दिखाई देने लगी थी। राम के मन में भी नारी के प्रति महिमा सही मायने में सीता के प्रति महिमा है।
उनके हृदय का प्रत्येक अंश सीता के प्रति प्रेम से आप्लावित है। शायद इसीलिए वह स्वयं को सीता के स्थान पर रखकर सोचते हैं कि -
मेरा अपवाद जगत करता, _ क्या छोड़ जानकी देती चल ।।९०।।
निश्चित रूप से नहीं, तो फिर मैंने कैसे छोड़ दिया? यह भी एक गहरा दंश है। राम अर्द्धविक्षिप्त की भाँति प्रलाप करने लगते हैं 'हे लक्ष्मण ! मुझे धिक्कारो, मारो, भाई मत कहना । हे लवकुश! तुम मुझे पिता मत कहना । हे सीते! तुम निर्दयी हो, क्या मेरा अपराध क्षम्य नहीं था।' सीते! तुमसे ही पूछ रहा,
निरदये कहूँ अथवा सदये? । माना मेरा ही है कसूर,
पर क्षम्य नहीं अपराध प्रिये? ||१०२।। राम को पुनः बोध जागता है। राम विचारते हैं कि अपराध मेरा ही है और इसका दण्ड भी यही है कि जिसप्रकार मैंने सीता की अग्निपरीक्षा लेकर उसे अग्नि में जलाया; उसीप्रकार मैं भी स्वयं को शोक की अग्नि में जलाऊँगा। फिर भी एक अन्तर अवश्य रहेगा कि सीता तो अग्नि परीक्षा देकर पवित्र प्रमाणित हो गई; लेकिन मैं स्वयं को स्वयं की दृष्टि में पवित्र प्रमाणित नहीं कर पाऊँगा। अतः मैं सीता का अनुगामी हुआ। जगत्जन जब आपस में अभिवादन करेंगे तो पहले सीता का नाम उच्चारित करते हुए सीताराम कहेंगे। ___अंत में कवि इस सम्पूर्ण काव्य की प्रतीक योजना को स्पष्ट करता है कि इस काव्य में जो राम है, वह आतमराम है और जो सीता है, वह जिनवाणी है। यह जिनवाणी रूपी सीता तो भगवान के ज्ञान रूपी कुण्ड में स्नान कर पावन हो गई और यह प्रमाणित कर गई कि उसका होना तो आतमराम को पावन बनाए रखने के लिए है। यदि आतमराम स्वयं को प्रायश्चित की अग्नि में तपाकर शुद्ध करे तो वह भी पावन हो सकता है।