Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 27
________________ पश्चात्ताप एक समीक्षात्मक अध्ययन 31 निर्मलता के पक्ष में उनके साक्ष्य के अतिरिक्त किसी भी परीक्षा का उल्लेख नहीं मिलता है। किन्तु एक दूसरे अवसर पर सीता-पुत्रों के राम सेना से युद्ध के पश्चात् राम उन पुत्रों के साथ अयोध्या लौटते हैं। अयोध्या पहुँचकर सुग्रीव-हनुमान आदि राम से सीता को स्वीकार करने की प्रार्थना करते हैं। तब राम इस शर्त पर कि - 'सीता स्वयं के सतीत्व का साक्ष्य दें तो स्वीकार कर सकते हैं - यह कहते हैं। उत्तर में सीता कहती हैं 'मैं शूली पर चढ़ सकती हैं, आग में प्रवेश कर सकती हूँ, लोहे की तपी हुई छड़ धारण कर सकती हूँ अथवा उग्र विष भी पीसकती हूँ।' राम ने अग्निपरीक्षा को ही उचित समझा और तीन सौ हाथ गहरा कुण्ड बनवाकर आग प्रज्ज्वलित कराकर, सीता से सतीत्व की शपथ खाकर प्रवेश करने को कहा। सीता ने जैसे ही प्रवेश किया अग्निकुण्ड स्वच्छ जल से भर गया और लोगों ने देखा सीता सहस्र दल कमल पर विराजमान हैं। राम ने सीता से क्षमा याचना की और साथ चलने को कहा। इस प्रस्ताव को सीता ठुकराकर जैनेश्वरी दीक्षा लेने के लिए चल पड़ीं। ____ इसीप्रकार 'कथा सरित सागर' में सीता की परीक्षा राम द्वारा न होकर बाल्मीकि ऋषि के आश्रम के अन्य ऋषियों द्वारा ली जाती है। वह भी अग्नि के द्वारा नहीं बल्कि जल से भरे टीटिभ सरोवर में प्रवेश कराकर । इसप्रकार अधिकांश मध्यकालीन रामायणों में बाल्मीकि रामायण के प्रक्षिप्त अंश को आधार बनाकर कमोवेश अलग-अलग ढंग से इस घटना का उल्लेख किया है और घटना के कारणों में किसी ने भग ऋषि (अहिल्या के पति) के और किसी ने मन्दोदरी के शाप का उल्लेख किया है। __ अन्य वृत्तान्तों में सीता की अग्निपरीक्षा के अतिरिक्त निम्न परीक्षाओं का भी उल्लेख मिलता हैं जैसे - विषैले सो से भरे घड़े में हाथ डालना, मस्त हाथियों के सामने फेंका जाना, सिंह और व्याघ्र के वन में छोड़ देना, अत्यन्त तप्त लोहे पर चलना आदि। । इसीप्रकार सीता का निर्वासन या त्याग की घटना का कुछ ग्रन्थों में । जिक्र ही नहीं किया है और कुछ ग्रन्थों ने सीता-निर्वासन का वर्णन तो किया है; किन्तु कारण भिन्न-भिन्न माने हैं। उदाहरण के लिए - आदि रामायण, महाभारत, हरिवंश पुराण, वायुपुराण, विष्णुपुराण, नृसिंहपुराण, अनामकं जातक, गुणभद्राचार्य कृत उत्तर पुराण में इस घटना का उल्लेख ही नहीं है। इसके विपरीत, जिन्होंने उल्लेख किया है उनके कारण भिन्न-भिन्न हैं, जैसे - बाल्मीकि रामायण का उत्तर काण्ड, रघुवंश, उत्तर रामचरित, कुन्दमाला, पउमचरियं, पद्मचरित ने लोकापवाद को; तो कथासरित्सागर, भागवत पुराण, जैमिनीय अश्वमेघ, पद्मपुराण, तिब्बती रामायण ने धोबी की कथा को; उपदेशप्रद कहावली, हेमचन्द कृत जैन रामायण, आनंद रामायण आदि ने रावण के चित्र को कारण माना है। सीता के निर्वासन के परोक्ष कारणों में भृगु ऋषि का शाप, तारा का शाप, शुक्र का शाप, लक्ष्मण का अपमान, लोमश ऋषि का शाप, सुदर्शन मुनि की निन्दा, बाल्मीकि को प्रदत्त वरदान आदि को कारण माना गया है। ____ कुछ ग्रन्थों ने सीता के निर्वासन को अवास्तविक करार देते हुए नाटकीय घटनाक्रम की तरह केवल प्रतीकात्मक त्याग की युक्ति का सहारा लिया है। उदाहरण के लिए - तुलसीकत गीतावली में राम की आज्ञा से लक्ष्मण सीता को वन में न छोड़कर बाल्मीकि के हाथों सौंप देते हैं; क्योंकि दशरथ की अकाल मृत्यु के कारण, उनकी शेष आयु राम को मिलती है - जिसे वह सीता के साथ भोगना अनुचित समझकर स्वयं ही निर्वासित कर देते हैं। यह घटना रूप बदलकर कमोवेश अन्य ग्रन्थों, अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण आदि में आती है। उपर्युक्त सम्पूर्ण विवरण से स्पष्ट है कि कवि हुकमचन्द भारिल्ल के रचित 'पश्चात्ताप' नामक काव्य में पौराणिक वृत्त के साथ कल्पना का समुचित प्रयोग किया गया है।

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