Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ पश्चात्ताप पश्चात्ताप (६४) घर में रखना अपराध यदि, तो यह अपराध हमारा है। पर दण्ड जानकी को देना, कैसा यह न्याय हमारा है? ।। (६५) तो हमने नहीं दिया है क्या, ऐसा सन्देश जगत जन को। छुड़वा दें जन निर्जन वन में, एकाकी ऐसी' नारी को।। (६६) छुड़वाकर सीता देवी को, जंगल में हमने धोबी को। मानों चैलेंज किया अब तुम, जंगल में छोड़ो धोबिन को ।। (६९) अब क्यों मुझको संतापन हो, केवल मैं ही अपराधी हूँ। हे शोकानल! तू जला मुझे, मैं इसी सजा का भागी हूँ। (७०) हे विधि! मैंने अन्याय किया', पर तू अन्याय नहीं करता। विकराल अग्नि की ज्वाला को, सज्जित सरवर क्यों नहीं करता। मेरे अपराध दण्ड में भी, तू अरे देर क्यों करता है। तू खूब जला शोकानल में, रे बन्धु दया क्यों करता है? ।। (७२) मैं शोकानल में जल-जलकर, निष्कीट सुवर्ण खरा हूँगा। जितना जल सकूँजलूँहेविधि!, पर जनभय पूर्ण जला दूंगा ।। हमने झोंका निर्दय होकर, सीता देवी को ज्वाला में । अब तुम भी क्यों हो उदासीन, धोबिन को झोंको ज्वाला में ।। (६८) पर अग्निपरीक्षा बिन घर में, __ रखकर धोबी ने न्याय किया। पर मैंने सीता को तज कर। अन्याय किया अन्याय किया ।। ।. १. बलात् परघर में रही हुई सीता । सीता अब तक परित्यक्ता थी, पर हुआ आज मैं परित्यक्त। सुन लोहेजन-जन कान खोल, ___ मैं करता हूँ स्पष्ट व्यक्त ।। R१. भाग्य या भाग्यविधाता २. स्वर्ण, सोना

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