Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ पश्चात्ताप पश्चात्ताप (५९) इस जग में अपनी रक्षा में, सारी दुनियाँ देती नजीर । धोबिन ने अपनी रक्षा में, सीता की दी थी बस नजीर ।। आरोप जानकी देवी पर, उसने तो नहीं लगाया था। उसने तो घर में रहने का, अपना अधिकार जताया था।। (५४) सीता-सतीत्व में शंका थी, तो क्यों उसको मैं घर लाया। सीता यदि परम पुनीता' थी, तो क्यों जनमत से घबराया ।। (५५) जनता क्या जाने सीता को, शायद उसको विश्वास न हो। मुझको था जब पूरा यकीन, क्यों मुझको अब संताप न हो।। (५६) सीता-सतीत्व का जनता को, विश्वास दिलाना था मुझको । जो अग्नि-परीक्षा आज हुई, स्वीकृत होती उस दिन उसको।। (५७) देना नजीर न्यायालय में, तो है कोई अपराध नहीं। अपने बचाव में कुछ कहना, क्याजनजनका अधिकारनहीं ?|| (५८) आदर्श राम थे पतियों के, उनकी नजीर दी पतियों ने। आदर्श जानकी सतियों की, उनकी नजीर दी सतियों ने ।। १. पवित्र २. अदालत में पुराने फैसलों को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करना। । हम धोबिन को बदनाम करें, इसमें उसका कुछ दोष नहीं। उस पर भी था संकट भारी, सीता पर कोई रोष नहीं।। सारा अपराध हमारा है, धोबी-धोबिन का दोष नहीं। कह रहे राम मेरे मन में, धोबी-धोबिन पर रोष नहीं।। रावण के घर में रही हुई, सीतादेवी को वर्षों तक। रक्खा था सादर मान सहित, हमने ही तो अपने घर में ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43