Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ पश्चात्ताप पश्चात्ताप I (९४) लोकापवाद के कारण ही, सीता को मैंने क्यों छोड़ा। पाखण्ड नहीं क्या यह मेरा, लोकापवाद का ले रोड़ा।। (९५) चुप क्यों हो आज सुनो लक्ष्मण!, धिक्कारो मुझको बार-बार । अन्यायी भूपति को पाकर, करते क्यों ना तुम असि प्रहार? ।। (९६) तुम तो अन्यायी नृपगण का, मद-मर्दन करने वाले हो। पर आज हो गया क्या तुम को, जो चुप्पी साधे बैठे हो? (९९) मेरे बेटे ! सीता-सपूत!!, सुन लो तुम मेरी एक बात । लक्ष्मण तो कायर हुये किन्तु, मुझको मत कहना कभी तात ।। (१००) मैं अन्यायी क्या कहलाऊँ, ऐसे वीरों का पिता आज?। लव कुश लक्ष्मण शत्रुघ्न भरत, नहिं दिखें न मुझको रुचेराज ।। (१०१) सब सूना-सूना लगता है, प्रासाद खण्डहर से लगते ।। अमृत भी विष सा लगे आज, सब भोग व्याल सम हैं डसते ।। (१०२) सीते! तुमसे ही पूछ रहा, निरदये कहूँ अथवा सदये?। माना मेरा ही है कसूर, क्या क्षम्य नहीं अपराध प्रिये?।। मैं नहीं तुम्हारा भाई हूँ, __ मैं हूँ अब अन्यायी नायक । अन्यायी के अपराध दण्ड, के हेतु चलाओ तुम शायक ।। (९८) पर आज दया क्यों करते हो?, तुम समझ मुझे अग्रज भ्राता। यह पक्षपात क्या नहीं अनुज?, अन्यायी से तोड़ो नाता।। . १. तलवार २. बाण नहिं-नहिं मैं भूल गया सीता, निर्दय होकर तुमको त्यागा। न्यायोचित दण्ड नहीं भोगूं, तो फिर अन्याय महा होगा।। १. महल २. साँप

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