Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 10
________________ पश्चात्ताप पश्चात्ताप धर्मपालन होता रहता, जरा तुम सोचो कुछ स्वयमेव ।। (२५) यदि था मन में कुछ सन्देह, __ जलाकर अग्निशिखा की आँच। और देकर कठोर आदेश, प्रभो तत्क्षण कर लेते जाँच ।। (२६) सत्य की होती है जब जाँच, नहीं आती है उसको आँच। जाँच का अवसर भी न दिया, किया क्योंयह असीम अन्याय ।। (२७) हुआ जो आज, उसी दिन क्यों, नहीं हो सकता था हे नाथ । न होती मैं अनाथ इस तरह, किन्तु कुछ भी न! सोचा नाथ ।। त्याग देने से आतम धर्म, मिलेगा भव-भव में संताप। (३०) हुआ सो हुआ किन्तु अब तो, जगतकीवणिकवृत्ति लखकर। नहीं रहना है इसमें मुझे, धरूँगी जिनदीक्षा हितकर ।। ( पद्धरिका छन्द) (३१) ऐसा कह जनक सुता चल दी, माँ-माँकह लवकुश चिल्लाये। वे रुंधे गले से बोले हे माँ!, हमें छोड़कर क्यों जाये? ।। अरे निन्दा सुनकर मेरी, नाथ! त्यागा तुमने मुझको। धर्म की सुनकर निन्दा कभी, त्याग मत देना तुम उसको ।। हमने क्या किया दोष जननी, जो हमें छोड़कर तुम जातीं? । हम रहे सदा ही आज्ञा में, क्योंकर हमको तुम बिसराती?। (३३) सौमित्र भरत भी आ पहुँचे, शत्रुघ्न खड़े थे सिर नाये। लौटो-लौटो हे जगजननी!, क्यों हम पर नहीं दया आये?।। १. बनियों जैसी स्वार्थी प्रवृत्ति २. देखकर ३. सुमित्रा का पुत्र लक्ष्मण त्यागने से मुझको हे नाथ!, हुआ होगा थोड़ा आताप ।

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