Book Title: Paschattap
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 8
________________ १४ (५) प्रजा से सुन लांछन की बात, किया यदि रामचन्द्र ने न्याय । हुआ पर जनक- सुता के साथ, महा अन्याय महा अन्याय ।। (६) हो गई अग्निपरीक्षा आज, खड़ा था पूरा अवध समाज । शील ने रखी सती की लाज, प्रेम से व्याकुल थे रघुराज ।। (७) सोचते थे मन में रघुवीर, खड़े थे जैसे हों तस्वीर । मनीषा करती तर्क-वितर्क हो रहे थे वे बहुत अधीर ।। (८) मुझे था भय कि मोह में आज, प्रजा के साथ न हो अन्याय । इन्हीं संकल्प - विकल्पों में, हो गया यह कैसा अन्याय ।। ( ९ ) न्याय करना न आवे जिसे, न्यायप्रिय कहता उसे जहान । स्वजन को दे देने से दण्ड, नहीं हो जाता कोई महान ।। १. अयोध्या या अवध नामक देश / प्रदेश २. बुद्धि ३. दुनिया पश्चात्ताप पश्चात्ताप (१०) किसी को कैसे दे वह दण्ड, सत्य की नहीं परख है जिसे । बिठा कैसे देते हैं लोग, न्याय के सिंहासन पर उसे ।। ( ११ ) दिया है निरपराध को दण्ड, न्यायप्रिय मुझको मत कहना । न्याय है यह अथवा अन्याय, न्याय है मुझे आज सपना ।। (१२) प्रजाजन में कैसा अज्ञान, भरा है हे मेरे भगवान । चुने चाहे जिसको नेता, नहीं जो उचित दण्ड देता ।। (१३) किन्तु है यह कसूर किसका, हमारा अथवा जनगण का । उन्होंने अपराधी को चुना, किन्तु मैं क्यों कहने से बना ।। ( १४ ) हमारा ही है इसमें दोष, हुआ जो जाने-अनजाने । प्रजाजन कैसे पहचाने, नहीं हम अपने को जानें ।। १. पुराने जमाने में मुख्यरूप से राजा ही न्यायाधीश होते थे। २. यद्यपि राम को जनता ने नहीं चुना था, तथापि उनके चुने जाने में जन-जन की अनुमति अवश्य थी। लेखक के इन विचारों को आज के सन्दर्भ में भी देखा जाना चाहिए।

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