Book Title: Par se Kuch bhi Sambandh Nahi Author(s): Ratanchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 5
________________ पर से कुछ भी संबंध नहीं होती है। ये ही वस्तु के स्वचतुष्टय हैं इन चारों में द्रव्य भी एक पक्ष है, द्रव्यांश है जो कि सामान्य-विशेषात्मक होता है। इसप्रकार प्रथम तो वस्तु के इस सामान्य-विशेषात्मक द्रव्यांश को भी द्रव्य संज्ञा है। दूसरे मूल वस्तु को भी द्रव्य कहते हैं। मूल द्रव्य से तात्पर्य है जिसमें सामान्यविशेषात्मक, एकानेक, नित्यानित्य और भेदाभेद ये आठों सम्मिलित हैं। ये आठों द्रव्य भाव या गुण की अपेक्षा काल की अपेक्षा एवं क्षेत्र की अपेक्षा हैं। ये दोनों ही द्रव्यदृष्टि के विषय नहीं बनते। तीसरा सामान्य, अभेद, नित्य और एक - इन चारों के सम्मिलित रूप का नाम द्रव्य है । यह इसमें पर्याय शामिल नहीं है। तीसरे अर्थवाला द्रव्य ही दृष्टि का विषय है। चौथे, लौकिक दृष्टि से रुपया-पैसों को भी द्रव्य कहा जाता है। लोक मजाक में कहते हैं सोनगढ़ वालों की तो द्रव्य पर ही दृष्टि रहती है। अर्थात् ये लोग पैसा वालों को ही सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। पाँचवें, पूजन की सामग्री को भी अष्टद्रव्य या द्रव्य कहते हैं। छठवें, मन्दिर की वेदी पर उत्कीर्ण अथवा चाँदी के बने अष्ट मंगल द्रव्य भी होते हैं किन्तु ये सब द्रव्यदृष्टि के विषय वाले द्रव्य नहीं हैं। इन सब में तीन नम्बर वाला द्रव्य ही द्रव्यदृष्टि का विषय है। अत: इनसे भ्रमित नहीं होना चाहिए। १. द्रव्यार्थिकनय के विषय हैं - (१) द्रव्य का अभेद-सामान्य (२) क्षेत्र का अभेद-प्रदेशों का अभेद (३) गुणों का अभेद-अखण्डता (४) काल का अभेद-नित्यता २. पर्यायार्थिकनय के विषय - (१) विशेष (द्रव्यांश) (२) प्रदेश भेद (खण्ड-खण्ड प्रदेश) क्षेत्रांश (३) अनित्यता (कालभेद) कालांश (४) अनेकता (गुणभेद) भावांस जो-जो पर्यायार्थिकनय के विषय हैं उन सबकी पर्याय संज्ञा है और जो-जो द्रव्यार्थिकनय के विषय हैं, उन सबकी द्रव्यसंज्ञा है। देखो, जिसप्रकार द्रव्य का भेद विशेष तो दृष्टि के विषय में नहीं है और द्रव्य का अभेद-सामान्य दृष्टि के विषय में सम्मिलित रहता है, क्षेत्र का भेद-प्रदेशों का भेद दृष्टि के विषय में नहीं रहता और क्षेत्र का अभेद प्रदेशों की अखण्डता रहती है तथा गुण का भेद दृष्टि के विषय में नहीं आती और गुणों का अभेद सम्मिलित रहती है उसीप्रकार काल (पर्याय) अनित्यता तो दृष्टि के विषय में नहीं रहती, किन्तु काल की नित्यता काल का अभेद पर्यायों का अनुस्यूति से रचित प्रवाह काल की अखण्डता दृष्टि के विषय में सम्मिलित किया है। काल का भेद, प्रदेश का भेद, गुण का भेद और द्रव्य का भेद - इन चारों का नाम पर्याय है। मात्र काल के भेद का नाम पर्याय नहीं है। ___ काल का अभेदकाल की नित्यता (निरन्तरता) पर्याय में शामिल नहीं है। मात्र - चारों के भेद ही पर्याय में शामिल हैं। अत: काल (पर्याय) की नित्यता अर्थात पर्यायों का अनुस्यूति से रचित धारा प्रवाहपना द्रव्यदृष्टि के विषय में सम्मिलित है। इसे नहीं भूलना चाहिए। प्रश्न : जब 'ज्ञानमात्र' आत्मा का लक्षण है तो आत्मा का दूसरा नाम 'ज्ञान' ही क्यों नहीं रखा? उत्तर : 'ज्ञान' नाम देने से आत्मा के अनन्त गुणों की उपेक्षा होती है मात्र ज्ञानगुण आत्मा के समग्र स्वरूप को बताने में समर्थ नहीं है। ज्ञानमात्र कहने से अनन्तगुणमय सम्पूर्ण आत्मा समझ में नहीं आता है। "ज्ञानमात्र इस शब्द में, हैं अनन्त गुण व्याप्त ।Page Navigation
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