Book Title: Par se Kuch bhi Sambandh Nahi
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ १६ पर से कुछ भी संबंध नहीं प्रश्न १०: निमित्तों का ज्ञान क्यों आवश्यक है ? उत्तर : निमित्तो का यथार्थ स्वरूप जाने बिना निमित्तों को कर्त्ता माने तो श्रद्धा मिथ्या है तथा निमित्तों को माने ही नहीं तो ज्ञान मिथ्या प्रश्न ११ : क्या निमित्तों की पृथक् सत्ता है, स्वतंत्र अस्तित्व है ? यदि है तो बताइये छह द्रव्यों में कौन द्रव्य उपादान व कौन द्रव्य निमित्त है उत्तर : नहीं , ऐसा कोई बटवारा नहीं है। जो द्रव्य पर पदार्थों के परिणमन में निमित्त रूप हैं, वे सभी निमित्त रूप द्रव्य स्वयं के लिए उपादान भी हैं। उदाहरणार्थ : जो कुम्हार घट कार्य का निमित्त है, वही कुम्हार अपनी इच्छारूप कार्य का उपादान भी तो है। निमित्त व उपादान कारणों के अलग-अलग गाँव नहीं बसे हैं। जो दूसरों के कार्य के लिए निमित्त हैं, वे ही स्वयं अपने कार्य के उपादान भी निमित्तोपादान कारण : स्वरूप एवं भेद-प्रभेद विभाजित किया गया है। जिन्हें रागादि विभावभावरूप कार्यों के सम्पन्न होने में निमित्त कारणों के रूप में इसप्रकार खोज सकते हैं - १. रागादि का अन्तरंग निमित्त : मोहनीय कर्म का उदय । २. बहिरंग निमित्त : स्त्री, पुत्र, धन, धान्य, रोग, शत्रु-मित्र आदि बाह्य वस्तुएँ। ३. प्रेरक निमित्त : इच्छा शक्तिवाले जीव तथा गमन किनावाले जीव पुद्गल। ४. उदासीन निमित्त : निष्क्रिय धर्म, अधर्म, आकाश, काल तथा इच्छा व राग रहित पर पदार्थ। ५. वलाधान निमित्त : वल+आधान = वल का धारण । उपकार, आलम्बन आदि इसके पर्यायवाची हैं। निष्क्रिय होने पर भी जिनका क्रियाहेतुत्व नष्ट नहीं होता उसे वलाधान कहते हैं। प्रेरणा किए बिना सहायक मात्र होने से इसे उदासीन भी कहते हैं। वलाधान निमित्त को समझाते हुए कहा गया है - जैसे अपनी जांघ के बल चलनेवाले पुरुष को यष्टि ( लकड़ी) का आलंबन वलाधान निमित्त है। वस्तुतः निष्क्रिय निमित्तों का ही एक नाम वलाधान है।' ६. प्रतिबन्धक : रुकावट करनेवाले या बाधक निमित्त । जैसेसम्यग्दर्शन की प्राप्ति में मिथ्यात्व कर्म का उदय तथा अज्ञानी गुरु आदि का मिलना। ७. अभावरूप निमित्त : समुद्र की निस्तरंग दशा में हवा का न चलना। तत्त्वोपलब्धि के लिए तदनुकूल सत्समागम का अभाव । ८. सद्भावरूप निमित्त : तरंगित दशा में वायु का चलना । तत्त्वोपलब्धि में सत्संग का मिलना। प्रश्न १४ : निमित्तों को उपचरित कारण या आरोपित कारण क्यों कहा? हैं। प्रश्न १२: क्या निमित्त कारण के अन्य नाम भी हैं ? उत्तर : हाँ, कारण, प्रत्यय, हेतु, साधन, सहकारी, उपकारी, उपग्राहक, आश्रय, आलम्बन, अनुग्राहक, उत्पादक, कर्ता, प्रेरक, हेतुमत, अभिव्यंजक आदि नामान्तरों का प्रयोग भी आगम में निमित्त के अर्थ में हुआ है। प्रश्न १३ : क्या निमित्त कई प्रकार के होते हैं, निमित्तों के कुल कितने भेद हैं और उनका क्या स्वरूप है ? उत्तर : वैसे तो निमित्त असंख्य प्रकार के हो सकते हैं। जितने कार्य उतने ही उनके निमित्त; परन्तु आगम में स्थूलरूप से उन्हें आठ वर्गों में १. क्रिया हेतुमेतेषां, निष्क्रियाणां न हीयते । यत्खलु बलाधान मात्र मन विवक्षितम् ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52