Book Title: Par se Kuch bhi Sambandh Nahi
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ संहार कारण : उत्पाद और ध्रौव्य रहित अकेले व्यय को माननेवाला संहार कारण को नहीं मानता / इसलिए व्यय ( संहार ) का कारण उत्पाद व ध्रौव्य है।' साधकतम कारण : तत्समयकी योग्यतारूप क्षणिक उपादान को साधकतमकारणकहते हैं। परिशिष्ट - 2 ( कविवर बनारसीदासजी द्वारा रचित निमित्तोपादान दोहे ) यहाँ शिष्य के प्रश्न के रूप में कविवर बनारसीदास ने अज्ञानियों की मान्यता को निम्नांकित दो दोहों के माध्यम से प्रस्तुत किया है, जो इसप्रकार गुरु उपदेश निमित्त बिन उपादान बलहीन / ज्यों नर दूजे पाँव बिना चलवेको आधीन // 1 // हो जाने था एक ही उपादान सों काज / थकै सहाई पौन बिन पानी मांहि जहाज / / 2 / / जिसप्रकार आदमी दूसरे पैर के बिना नहीं चल सकता, उसीप्रकार उपादान ( आत्मा स्वयं ) भी सद्गुरु के उपदेशरूप निमित्त के बिना तत्त्वज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ है। शिष्य पूछता है कि मैं तो ऐसा मानता था कि मात्र उपादान से ही काम होता है, परन्तु सच बात यह है कि जिसप्रकार पानी में पवन की सहायता के बिना जहाज थक जाता है, उसीप्रकार निमित्त की सहायता के बिना उपादान अकेला कार्य नहीं कर सकता। इसप्रकार कवि ने शिष्य के प्रश्न के रूप में अज्ञानियों की मान्यता बताई है जो ठीक नहीं है। उत्तर में कवि कहते हैं कि - ज्ञान नैन किरिया चरण दोऊ शिवमग धार / उपादान निश्चय जहाँ, तहाँ निमित्त व्यवहार / / 3 / / अपनी बात मोक्षमार्ग में प्रयोजनभूत, आत्मानुभूति प्राप्त करने में साधकतम, कर्तृत्व की चिन्ता से निश्चिन्त करनेवाला, कर्ताबुद्धि के अहंकार से उत्पन्न कषाय चक्र को कमजोर करनेवाला, निराकुल एवं शाश्वत सुख प्राप्त होने का एकमात्र अमोघ उपाय यदि कोई है तो वह है 'विश्व की अनादिनिधन, पर से निरपेक्ष, स्वाधीन, स्वतन्त्र, स्वसंचालित कार्य-कारण व्यवस्था' का यथार्थ श्रद्धान-ज्ञान एवं तदनुरूप आचरण। जिनागम में इसकी चर्चा मुख्यत: निमित्तोपादान कारणों के रूप में हुई है। कहीं-कहीं यह विषय निमित्त-नैमित्तिक व उपादान-उपादेय सहज सम्बन्ध तथा वस्तु की कारण-कार्य व्यवस्था के रूप में भी चर्चित हुआ है। जैनदर्शन की पृथक् पहचान करानेवाला एवं स्वतन्त्र अस्तित्व का परिचायक 'वस्तु स्वातन्त्र्य' का सिद्धान्त इस स्वतन्त्र कार्य-कारण व्यवस्था एवं सहज निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध का मूल आधार है; जो कि जीवों को स्वालम्बन का पाठ पढ़ाता है। परोक्ष रूप में तो इस मौलिक सिद्धान्त के बीज चारों अनुयोगों में विद्यमान हैं, किन्तु अध्यात्म व न्याय ग्रन्थों में इस विषय का विशेष स्पष्टीकरण किया गया है। ज्ञातव्य है कि विगत सौ वर्षों से ये विषय जनसाधारण की पकड़ से परे हो गये थे। केवल विद्वानों के ज्ञानकोष तक ही सीमित रह गये थे। सहज संयोग से पिछले साठ-पैंसठ वर्षों से आध्यात्मिक सत्पुरुष श्रीकानजी स्वामी के सत्प्रयासों से ये विषय पुन: पठन-पाठन में आये हैं, विशेष चर्चित हुए हैं। एतदर्थ उनका जितना भी उपकार माना जाय, कम ही होगा। प्रस्तुत संसोधित/संवर्धित संस्करण में पस्तक के प्रारम्भ में ही जैनदर्शन का प्राण 'वस्तु स्वातन्त्र्य की घोषणा' शीर्षक चार पृष्ठीय लेख जोड़ा है। इसके अतिरिक्त गुरुदेवश्री कानजीस्वामी द्वारा भैया भगवतीदास एवं कविवर बनारसीदास रचित निमित्तोपादान दोहों पर हुए प्रवचनों से भी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरों को सरलसुबोध भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इसकारण इस पुस्तक की विषयवस्तु पूर्व संस्करण से लगभग डेढ़ गुनी हो गयी है। इससे पाठकों को निःसन्देह आशातीत लाभ होगा। कक्षा में पढ़ाते-पढ़ाते विषय जैसा-जैसा परिमार्जित होता गया; तदनुसार कुछ विस्तृत सामग्री तैयार हो गई। उसे ही व्यवस्थित करके लिखने का यह लघु प्रयास है / आशा है पाठकों को यह पुस्तक भी उपयोगी सिद्ध होगी। - रतनचन्द भारिल्ल

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52