Book Title: Par se Kuch bhi Sambandh Nahi Author(s): Ratanchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 8
________________ पर से कुछ भी संबंध नहीं इसप्रकार इस गाथा में व्यवहार के प्रयोग का निषेध तो अनुभव ने किया है। तत्त्व के अन्वेषण के काल में तो इसका (व्यवहार का) समर्थन किया है। अतः निश्चय को ही सदैव मुख्य रखना व्यवहार को नहीं - यह बात कहाँ रही? वास्तव में तो निश्चय से ज्यादा व्यवहार का काल है। जिनको सम्यग्दर्शन नहीं हुआ उनको तो हमेशा व्यवहार ही मुख्य है; क्योंकि उनका तो पूरा काल तत्त्वान्वेषण का ही है। सम्यग्दृष्टि को भी छह महीने में एकबार ही क्षणिक अनुभूति होती है, उसके अतिरिक्त समग्रकाल तो व्यवहार का ही कारण है। पंचम गुण वाले को १५ दिन में एकबार और वीतरागी मुनिराज को भी २४ घण्टे में केवल ८ घण्टे ही अनुभूति रहती है। १६ घण्टे तो उनका भी व्यवहार में समय जाता है। उनका भी तत्त्वान्वेषण का काल अनुभूति के काल से दुगना रहता है। यहाँ यह ध्यान रखने योग्य है कि उन ८ घण्टों में भी लगातार अनुभूति नहीं रहती; क्योंकि यदि अन्तुर्मुहूर्त भी लगातार अनुभूति रह जाय तो केवलज्ञान हो जाता है।Page Navigation
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