Book Title: Par se Kuch bhi Sambandh Nahi
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 11
________________ उत्तर : ज्ञानस्वभावी आत्मा के आश्रय से; क्योंकि परिणामी के आश्रय से ही परिणाम होता है, अन्य के नहीं और द्वेष रूप परिणाम चारित्र गुणवन्त आत्मा का ( परिणामी का ) ही है। अत: उठाओ दृष्टि गाली या गाली देने वाले पर से तथा गाली का ज्ञान आत्मा के आश्रय से हुआ अतः आत्मा पर दृष्टि केन्द्रित करो। तभी आत्मानुभवरूप धर्म प्रगट होगा। पर से कुछ भी संबंध नहीं होता। जिनागम का यह महासिद्धान्त इसका प्रमाणभूत आधार है। अरे भाई ! हाथ का हिलना हाथ के परमाणुओं के आधार से हुआ, रुपयों का आना रुपयों के परमाणुओं के आधार से हुआ और इच्छा आत्मा के चारित्रगुण के आधार से हुई है। सबका स्वतंत्र परिणाम हुआ। कोई किसी के कारण नहीं हुए। यह है जैनदर्शन के वस्तु स्वातंत्र्य का उद्घोष। यह तो भिन्न-भिन्न द्रव्यों के परिणामों या पर्यायों की स्वतंत्रता की बात हुई; बात तो इससे आगे यह भी है कि - एक ही द्रव्य के अनेक गुणों के सहभावी परिणाम भी एक-दूसरे के आश्रित नहीं हैं। राग और ज्ञान भी एक-दूसरे के आश्रित नहीं हैं। सभी परिणाम एक आत्माश्रित ही हैं। उदाहरणार्थ - प्रयोग नं १ : किसी ने एक व्यक्ति को गाली दी और उस व्यक्ति को गाली देनेवाले पर द्वेष हुआ, उस द्वेष का कारण क्या है ? इस प्रश्न के उत्तर के लिए निम्नांकित तीन विकल्प हैं, इनमें दो गलत हैं और एक सही है। आपको सही उत्तर देना है - वे विकल्प इसप्रकार हैं - १. गाली देनेवाला व्यक्ति २. गाली शब्द ३. आत्मा का चारित्र दुःख का मूल कारण प्रश्न १ : दु:ख का मूल कारण क्या है ? उत्तर : पर से सम्बन्ध जोड़ना ही दुःख का मूल कारण है। लोक में जितने भी जीव और पुद्गलादि द्रव्य हैं, उन सभी का प्रति समय होनेवाला परिणमन पूर्ण स्वतंत्र है। वस्तुत: एक द्रव्य का दूसरे द्रव्यों में से किसी भी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं है। दो द्रव्यों के बीच कर्ता-कर्म, निमित्त-नैमित्तिक आदि जिन संबंधों की आगम में चर्चा है, वे सब कथन विविध अपेक्षाओं से किये गये औपचारिक कथन हैं। ___ परन्तु वस्तुस्थिति से अनभिज्ञजन इन औपचारिक व्यावहारिक कथनों को ही यथार्थ मानकर परस्पर राग-द्वेष किया करते हैं एवं मोह-राग-द्वेष वश पर के साथ एकत्व-ममत्व और कर्तृत्व में उलझे रहते हैं। यही इनके दुःख का मूल कारण है। वस्तुतः विश्व की कारण-कार्य व्यवस्था पूर्ण स्वाधीन, स्वावलम्बी और वैज्ञानिक है। आगम एवं अध्यात्म के परिप्रेक्ष्य में इसके गहन अध्ययन की आवश्यकता है। विश्व की कार्य-कारण व्यवस्था के संबंध में दार्शनिक जगत में भी बहुत गुण उत्तर : आत्मा का चारित्र गुण; क्योंकि परिणामी के आश्रय से ही परिणमन होता है, आत्मा के आश्रय से नहीं। __प्रयोग नं. २ : गाली शब्द के सुनते समय और द्वेष के समय जो गाली का और द्वेष का ज्ञान हुआ, वह ज्ञान किसके आश्रय से हुआ? इस प्रश्न के भी ३ विकल्प हैं, आपको सही उत्तर चुनना है। १. गाली शब्द के आश्रय से २. द्वेष के आश्रय से ३. ज्ञानस्वभावी आत्मा के आश्रय से।

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