Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 12
________________ भूमिका अद्वितीय एवं अपूर्व हैं। यह मानव-मस्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आविष्कार है। ५. प्रो० टी० शेरवात्सकी- पाणिनीय व्याकरण इन्सानी दिमाग की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है। ६. चीनी यात्री ह्यूनसांग- ऋषि ने पूर्ण मन से शब्द भण्डार से शब्द चुनने आरम्भ किये और १००० दोहों में सारी व्युत्पत्ति रची। प्रत्येक दोहा ३२ अक्षर का था। इसमें प्राचीन और नवीन सम्पूर्ण लिखित ज्ञान समाप्त होगया। शब्द और अक्षर विषयक कोई भी बात छूटने नहीं पाई (ह्यूनसांग वाटर्स का अनुवाद भाग १, पृ० २२१)। (संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास- पृ० १४१-४२ युधिष्ठिर मीमांसक)। अष्टाध्यायी के शिक्षक पाणिनि १. अष्टाध्यायी के प्रथम शिक्षक पाणिनि मुनि थे। पतंजलि मुनि लिखते हैं'उपसेदिवान् कौत्स: पाणिनिम्' (महा० ३।२।१०८) अर्थात् कौत्स पाणिनि मुनि के पास शिक्षा प्राप्त करने आये, वे पाणिनि के शिष्य थे। २. काशिकाकार पं0 जयादित्य ने लिखा है- अनूषिवान् कौत्स: पाणिनिम्, उपशुश्रूवान् कौत्स: पाणिनिम् (का० ३।२।१०८) अर्थात् कौत्स पाणिनि के अन्तेवासी थे और उनसे व्याकरणशास्त्र पढ़ते थे। ३. पतंजलि मुनि लिखते हैं- पाणिनि ने आकडारादेका संज्ञा (१।४।१) तथा प्राक्कडारादेका संज्ञा (१।४।१) यह सूत्र दोनों प्रकार से अपने शिष्यों को पढ़ाया। उभयथा ह्याचार्येण शिष्या: सूत्रं प्रतिपादिता: (महा० १।४।१)। पाणिनि की अन्य रचनायें अष्टाध्यायी के अतिरिक्त पाणिनि मुनि के शिक्षा, धातुपाठ, गणपाठ, उणादिकोष और लिङ्गानुशासन ये पांच शब्द-विद्या सम्बन्धी ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। वास्तव में ये अष्टाध्यायी के ही पूरक ग्रन्थ हैं। पाणिनि मुनि ने ये शिक्षा आदि ग्रन्थ अष्टाध्यायी की रचना से पहले बनाये। जैसे कि पतञ्जलि मुनि ने गणपाठ के विषय में लिखा है- स पूर्वपाठः, अयं पुन: पाठः (महा० १।१।१४) अर्थात् गणपाठ पाणिनि की पूर्व रचना है और अष्टाध्यायी अपर-रचना है। पं० युधिष्ठिर मीमांसक 'पातालविजय' और 'जाम्बवती विजय' नामक पाणिनि मुनि की दो काव्य-रचनायें भी मानते हैं। निर्वाण पाणिनि मुनि की मृत्यु के विषय में पञ्चतन्त्र में प्रसङ्गवश किसी प्राचीन ग्रन्थ से एक श्लोक उद्धृत किया गया है कि- 'सिंहो व्याकरणस्य कर्तुरहरत् प्राणान् प्रियान् पाणिनेः' (मित्रसम्प्राप्ति श्लोक ३६) इससे विदित होता है कि पाणिनि मुनि का प्राणहरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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