Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 11
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् पतंजलि की श्रद्धा १. पाणिनि और कात्यायन के शास्त्रों का अध्ययन करते हुए पतंजलि मुनि ने अपने पाण्डित्य की अमिट छाप महाभाष्य में लगाई है। पाणिनि की महिमा और प्रामाणिकता को स्वीकार करते हुए उन्होंने भी पाणिनि के लिए ‘भगवान्' शब्द का प्रयोग किया है- 'भगवत: पाणिनेराचार्यस्य सिद्धम्' (८।४।६८)। २. पतंजलि ने पाणिनि को प्रमाणभूत आचार्य की उपाधि दी है- 'प्रमाणभूत आचार्य: प्राङ्मुख उपविश्य महता यत्नेन सूत्राणि प्रणयति स्म' (महा० १।१।१)। ३. पतंजलि ने पाणिनि के लिए 'अनल्पमति आचार्य विशेषण का प्रयोग किया है (महा० १।४।५१)। इससे पाणिनि मुनि की बौद्धिक विशालता का परिचय मिलता है। ४. एक स्थान पर पतंजलि ने पाणिनि को 'वृत्तज्ञ आचार्य' लिखा है (महा० १३।३) पाणिनि वृत्त अर्थात् शब्द, अर्थ और सम्बन्ध के यथार्थ ज्ञाता आचार्य थे। ५. पतंजलि ने पाणिनीय अष्टाध्यायी को 'सर्ववेदपारिषदं हीदं शास्त्रम्' बताया है (महा० २।१५८)। अर्थात् पाणिनि मुनि का अष्टाध्यायी नामक शब्दशास्त्र सभी वेद-परिषदों (चरणों) से सम्बन्ध रखता है। ६. पतंजलि के समय पाणिनीय अष्टाध्यायी का अध्ययन प्रारम्भिक कक्षाओं तक फैल गया था। अत: उन्होंने लिखा है- आकुमारं यश: पाणिनेः, एषाऽस्य यशसो मर्यादा (महा० १।४।८९)। पण्डित जयादित्य काशिकावृत्ति के रचयिता पं० जयादित्य 'उदक् च विपाश:' (४।२।७४) सूत्र की वृत्ति में लिखते हैं- 'महती सूक्ष्मेक्षिका वर्तते सूत्रकारस्य' अर्थात् सूत्रकार पाणिनि की दृष्टि बड़ी सूक्ष्म है। पाश्चात्य विद्वानों की श्रद्धा ___ श्री कात्यायन आदि भारतीय वैयाकरणों के स्वर में पाश्चात्य विद्वानों ने भी पाणिनीय अष्टाध्यायी की इन शब्दों में मुक्तकण्ठ से श्लाघा की है १. प्रो० मोनियर विलियम्स- संस्कृत व्याकरण उस मानव मस्तिष्क की प्रतिभा का आश्चार्यतम नमूना है जिसे किसी देश ने अब तक सामने नहीं रखा। २. प्रो० मैक्समूलर- हिन्दुओं के व्याकरण में अन्वय की योग्यता संसार की किसी जाति के व्याकरण-साहित्य से बढ़-चढ़ कर है।। ३. कोलबुक- व्याकरण के वे नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गए थे और उनकी शैली अत्यन्त प्रतिभापूर्ण थी। ४. सर डब्ल्यू-डब्ल्यू हण्टर- संसार के व्याकरणों में पाणिनि का व्याकरण चोटी का है। उसकी वर्ण-शुद्धता, भाषा का धात्वन्वय सिद्धान्त और प्रयोगविधियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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