Book Title: Panchastikay Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 66
________________ 49. ण हि सो समवायादो अत्थंदरिदो दुणाणादो णाणी। अण्णाणि त्ति य वयणं एगत्तपसाधगं होदि।। नहीं अव्यय वह समवायादो अत्थंदरिदो णाणादो णाणी अण्णाणि त्ति अव्यय निश्चय ही (त) 1/1 सवि (समवाय) 5/1 अविच्छिन्न संयोग के कारण (अत्थंदरिद) 1/1 वि अर्थ में भिन्न अव्यय (णाण) 5/1 ज्ञान से (णाणि) 1/1 वि ज्ञानी (आत्मा) [(अण्णाणी)+(इति)] अण्णाणी (अण्णाणि) 1/1 वि अज्ञानी इति (अ) = इस प्रकार इस प्रकार अव्यय (वयण) 1/1 कथन [(एगत्त)-(पसाधग) 1/1 वि] एकत्व को साधनेवाला (हो) व 3/1 अक होता है और वयणं एगत्तपसाधगं हादि अन्वय- णाणी हि समवायादो णाणादो अत्थंदरिदो ण य सो अण्णाणि त्ति दु वयणं एगत्तपसाधगं होदि। अर्थ- ज्ञानी (आत्मा) निश्चय ही अविच्छिन्न संयोग के कारण ज्ञान से अर्थ में भिन्न नहीं (है) और (यदि कहो कि) वह (आत्मा) (ज्ञान से पूर्व) अज्ञानी (है) तो (स्वभाव से वह अज्ञानी हो जायेगा)। इस प्रकार का कथन (अज्ञान से) एकत्व को साधनेवाला होता है। पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (59)Page Navigation
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