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89. विज्जदि जेसिं गमणं ठाणं पुण तेसिमेव संभवदि।
ते सगपरिणामेहिं दु गमणं ठाणं च कुव्वंति।।
विज्जदि
जेसिं
होता है जिनका
गमणं
गमन
ठाणं
ठहरना फिर
तेसिमेव
उनका
(विज्ज) व 3/1 अक (ज) 6/2 सवि (गमण) 1/1 (ठाण) 1/1 अव्यय [(तेसिं) + (एव)] तेसिं (त) 6/2 सवि एव (अ) = ही (संभव) व 3/1 अक (त) 1/2 सवि [(सग) वि-(परिणाम) 3/2] अव्यय (गमण) 2/1 (ठाण) 2/1 अव्यय (कुव्व) व 3/2 सक
संभवदि
घटित होता है
ते
सगपरिणामेहि
गमणं
स्व परिणमन से किन्तु गमन ठहरना
और करते हैं
ठाणं
कुव्वंति
अन्वय- जेसिं गमणं विज्जदि पुण तेसिमेव ठाणं संभवदि दु ते सगपरिणामेहिं गमणं च ठाणं कुव्वंति।
___अर्थ- जिन (जीव और पुद्गलों) का गमन होता है फिर उन (जीव और पुद्गलों) का ही ठहरना घटित होता है, किन्तु वे स्व परिणमन से ही गमन और ठहरना करते हैं।
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
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