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88. ण य गच्छदि धम्मत्थी गमणं ण करेदि अण्णदवियस्स।
हवदि गदिस्स य पसरो जीवाणं पुग्गलाणं च॥
और
गच्छदि धम्मत्थी गमणं
गति करता है धर्मास्तिकाय गमन
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करेदि अण्णदवियस्स
करता है अन्य द्रव्यों में
अव्यय अव्यय (गच्छ) व 3/1 सक (धम्मत्थि) 1/1 वि (गमण) 2/1 अव्यय (कर) व 3/1 सक [(अण्ण) वि-(दवियस्स) 6/1+7/1] (हव) व 3/1 अक (गदि) 6/1-7/1
अव्यय (पसर) 1/1 (जीव) 6/2 (पुग्गल) 6/2 अव्यय
हवदि
होता है गति में
गदिस्स य पसरो जीवाणं पुग्गलाणं
पादपूरक फैलाव जीवों की पुद्गलों की और
अन्वय- धम्मत्थी ण गच्छदि य ण अण्णदवियस्स गमणं करेदि जीवाणं च पुग्गलाणं गदिस्स पसरो हवदि य।
अर्थ- धर्मास्तिकाय न (तो) (स्वयं) गति करता है और न अन्य द्रव्यों में गमन (उत्पन्न) करता है। (इससे) जीवों और पुद्गलों की गति में फैलाव होता
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। __(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134)
(98)
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार