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आगासं अवगासं गमणट्ठिदिकारणेहिं देदि जदि। उडुंगदिप्पधाणा सिद्धा चिटुंति किध तत्थ।।
आकाश द्रव्य
आगासं अवगासं गमणट्ठिदिकारणेहि
ठौर
गमन और स्थिति के
आधार में
।
देदि
प्रदान करता है
(आगास) 1/1 (अवगास) 2/1 [(गमण)-(द्विदि)(कारण) 3/2→7/2] (दे) व 3/1 सक अव्यय [(उढं) अ (गदि)(प्पधाण) 1/2 वि] (सिद्ध) 1/2 (चिट्ठ) व 3/2 अक
जदि
यदि
उड्डंगदिप्पधाणा
सिद्धा चिट्ठति किध तत्थ
ऊपर की ओर गमन करने में प्रमुख सिद्ध/मुक्त ठहरते हैं कैसे
अव्यय
अव्यय
वहाँ
अन्वय- जदि आगासं गमणट्ठिदिकारणेहिं अवगासं देदि उड्डेगदिप्पधाणा सिद्धा तत्थ किध चिट्ठति।
अर्थ- यदि आकाश द्रव्य गमन और स्थिति के आधार में ठौर प्रदान करता है (तो) ऊपर की ओर गमन करने में प्रमुख सिद्ध/मुक्त (जीव) वहाँ (लोक के अग्रभाग में) कैसे ठहरेंगे? 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) 2. प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता
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पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार