Book Title: Panchastikay Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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49.
ण हि सो समवायादो अत्थंदरिदो द णाणादो णाणी । अण्णाणि त्तिय वयणं एगत्तपसाधगं होदि ।।
50. समवत्ती समवाओ अपुधब्भूदो य अजुदसिद्धो य । तम्हा दव्वगुणाणं अजुदा सिद्धि त्ति णिद्दिट्ठा ||
51. वण्णरसगंधफासा परमाणुपरूविदा विसेसेहि। दव्वादो य अणण्णा अण्णत्तपगासगा होंति । ।
52. दंसणणाणाणि जहा जीवणिबद्धाणि णण्णभूदाणि । ववदेसदो पुधत्तं कुव्वंति हि णो सभावादो ||
53. जीवा अणाइणिहणा संता णंता य जीवभावादो । सब्भावदो अणंता पंचग्गगुणप्पधाणा य।।
54. एवं सदो विणासो असदो जीवस्स होड़ उप्पादो । इदि जिणवरेहिं भणिदं अण्णोण्णविरुद्धमविरुद्धं । ।
55. णेरइयतिरियमणुया देवा इदि णामसंजुदा पयडी । कुव्वंति सदो णासं असदो भावस्स उप्पादं ।।
56. उदयेण उवसमेण य खयेण दुहिं मिस्सिदेहिं परिणामे । जुत्ता ते जीवगुणा बहुसु य अत्थेसु वित्थिण्णा।।
पंचास्तिकाय (खण्ड
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द्रव्य-अधिक
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