Book Title: Panchastikay Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 125
________________ 89. विज्जदि जेसिं गमणं ठाणं पुण तेसिमेव संभवदि। ते सगपरिणामेहिं दु गमणं ठाणं च कुव्वंति।। 90. सव्वेसिं जीवाणं सेसाणं तह य पुग्गलाणं च। जं देदि विवरमखिलं तं लोए हवदि आयासं।। 91. जीवा पुग्गलकाया धम्माधम्मा य लोगदोणण्णा। तत्तो अणण्णमण्णं आयासं अंतवदिरित्त।। 92. आगासं अवगासं गमणट्ठिदिकारणेहिं देदि जदि। उडुंगदिप्पधाणा सिद्धा चिटुंति किध तत्थ।। 93. जम्हा उवरिट्ठाणं सिद्धाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं। तम्हा गमणट्ठाणं आयासे जाण णत्थि ति।। 94. जदि हवदि गमणहेदू आगासं ठाणकारणं तेसिं। पसजदि अलोगहाणी लोगस्स य अंतपरिवुड्डी।। 95. तम्हा धम्माधम्मा गमणट्ठिदिकारणाणि णागासं। इदि जिणवरेहिं भणिदं लोगसहावं सुणताणं।। 96. धम्माधम्मागासा अपुधब्भूदा समाणपरिमाणा। पुधगुवलद्धिविसेसा करेन्ति एगत्तमण्णत्तं।। (118) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार

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