Book Title: Panchastikay Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 111
________________ 94. जदि हवदि गमणहेदू आगासं ठाणकारणं तेसिं। पसजदि अलोगहाणी लोगस्स य अंतपरिवुड्डी।। जदि हवदि गमणहेदू आगासं ठाणकारणं तेसिं अव्यय __यदि (हव) व 3/1 अक होता है [(गमण)-(हेदु) 1/1] गति का कारण (आगास) 1/1 आकाश द्रव्य [(ठाण)-(कारण) 1/1] ठहरने का कारण (त) 4/2 सवि उनके लिए (पसज) व 3/1 अक होता है [(अलोग)-(हाणि) 1/1] अलोकाकाश का अभाव (लोग) 6/1 लोक की अव्यय और [(अंत)-(परिवुड्डि) 1/1] चरम सीमा की बढ़ोतरी पसजदि अलोगहाणी लोगस्स अंतपरिवुड्डी अन्वय- जदि आगासं तेसिं गमणहेदू ठाणकारणं हवदि लोगस्स अंतपरिवुड्डी य अलोगहाणी पसजदि। अर्थ- यदि आकाश द्रव्य उन (जीव और पुद्गलों) के लिए गति का कारण (या) ठहरने का कारण होता है (तो) लोक की (प्रतिपादित) चरम सीमा की बढ़ोतरी (माननी होगी) और (उस कारण से) अलोकाकाश का अभाव हो जायेगा। (104) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार

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