Book Title: Panchastikay Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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83.
धम्मत्थिकायमरसं [ ( धम्मत्थिकायं) + (अरसं)]
धम्मत्थिकायमरसं अवण्णगंधं असहमप्फासं । लोगोगाढं पुठ्ठे पिहुलमसंखादियपदेसं ।।
अवण्णगंध
असद्दमप्फासं
लोगोगाढं
पुट्ठ
धम्मथिका (धम्मत्थिकाय) धर्मास्तिकाय को 2/1
अरसं (अ-रस) 2/1 वि [(अ-वण्ण) - (अ-गंध)
2/1 fa]
[(असद्दं) + (अप्फासं)]
असद्दं (अ-सद्द) 2/1 वि अप्फासं (अ-प्फास) 2/1 वि
[(लोग) + (ओगाढं)] [(लोग) - (ओगाढ)
शब्द-रहित
स्पर्श-रहित
लोक में व्याप्त
पहुँचा हुआ
पिहुलमसंखादियपदेसं [ (पिहुलं) + (असंखादियपदेसं)]
पिहुलं (पिहुल) 2/1 वि
फैला हुआ
असंखादियपदेसं (असंखादियपदेस) असंख्यात प्रदेशवाला 2/1 fa
भूक 2 / 1 अनि ] (पुट्ठ) भूक 2 / 1 अनि
रस-रहित
वर्ण-रहित और
गंध-रहित
अन्वय- धम्मत्थिकायमरसं अवण्णगंधं असद्दमप्फासं लोगोगाढं पुठ्ठे पिहुलमसंखादियपदेसं ।
अर्थ - ( उस ) धर्मास्तिकाय को (जो ) रस-रहित, वर्ण-रहित, गंधरहित, शब्द-रहित, स्पर्श-रहित, लोक में व्याप्त, ( सब ओर) पहुँचा हुआ, (तथा) फैला हुआ असंख्यात प्रदेशवाला ( है ) ( उसको ) (तुम जानो)।
नोट
संपादक द्वारा अनूदित
पंचास्तिकाय ( खण्ड - 1 ) द्रव्य - 3
-अधिकार
(93)
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