________________
किसी अंग्रेज को संस्कृत समझाना हो तो अंग्रेजी शब्दों को माध्यम करके 'काउ' के स्थानमें 'गो' 'कमल' के स्थानमें 'क्रमेलक', 'स्वेट' के स्थानमें 'स्वेद' 'त्रि' के स्थानमें 'थ्री' 'फाधर' के स्थानमें 'पितर' इत्यादि ढंगसे समझाना सुगम होता है, इसी प्रकार संस्कृत जानने वालोंको प्राकृतभाषा समझाने के लिए संस्कृत का माध्यम सुगम रहता है. इसी हेतु से उन उन प्राकृत व्याकरणोंमें संस्कृतको माध्यम बनाया गया है. बाकी प्रकृतिः प्रयोगका संस्कृतम् अर्थ कभी भी शक्य नहीं और किसी भी कोशमें वा ग्रंथमें उसका ऐसा अर्थ निर्दिष्ट भी नहीं. अतः ऊपर कहा गया है कि प्रकृतिः का संस्कृतम् अर्थ माध्यम सापेक्ष है स्वतः नहीं. स्वतः तो प्रकृतिः का अर्थ स्वभाव ही प्रसिद्ध है और प्रचलित भी है.
प्राकृत शब्दों के प्रकार
हरेक भाषामें यौगिक शब्द होते हैं और रूढ तथा मिश्र भी होते हैं. यौगिक का अर्थ है कि जिन शब्दों की व्युत्पत्तिका हमको पता है. रूढ का अर्थ है कि जिन शब्दोंकी व्युत्पत्तिका हमको पता नहीं है. मिश्र शब्द वे हैं जिनकी व्युत्पत्तिका हमको कुछ अंशमें तो पता है और कुछ अंशमें पता नहीं है. वैदिक भाषा, प्राकृत भाषा तथा संस्कृत भाषा इन तीनों भाषाओं में भी इन तीनों प्रकारके शब्द हैं. रूढ शब्दका दूसरा नाम देश्य शब्द है, प्रस्तुत कोशमें इन तीनों प्रकारके शब्द पाए जाते हैं. शब्दकोशमें अनुक्रममें जहां* ऐसा निशान किया है वे सब देश्य शब्द हैं. बाकी के शब्दों में से कई शब्द संस्कृत शब्दों के साथ सर्वथा समान हैं और कई शब्द अल्पांशमें ही समान हैं. उन सब शब्दों का एक नाम इधर संस्कृतसम वा तत्सम रक्खा गया है. शब्दानुक्रममें प्रत्येक शब्द के साथ संस्कृतरूप सर्वत्र बताए गए हैं, इसको देखने से इन सब तत्सम शब्दों का पूरा परिचय हो सकेगा.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org