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आचार्य ज्योतिष शास्त्र तथा निमित्त शास्त्र के भी ज्ञाता थे, उनको यह मालूम हुआ कि मेरे बताने से इस ब्राह्मण द्वारा उत्तम शिष्यका लाभ होना संभव है. __आचार्यने कहा कि आपका कार्य जरूर कर देंगे; परंतु आप हमको क्या दगे ? सर्वदेवने कहा कि उस सारी निधिका आधा भाग मैं आपको भेट दूंगा. तब आचार्यने कहा कि मैं आपकी वस्तुका आधा भाग मेरी रुचिसे पसंद करके लूंगा. सर्वदेवने आचार्यकी बात को मान लिया और साक्षी भी नियत किये. __आचार्यने सर्वदेव के मकान पर आकर जहां धननिधि गडी हुई थी उस जगह को बता दिया और वहां खोदने से चालीस लाख सुवर्णमुद्रा उस धननिधिसे निकली..
सर्वदेवने अपने वचन के अनुसार बीस लाख सुवर्ण मुद्रा आचार्य को देनी चाही. पर आचार्यने कहा कि मैं अपने वचन के अनुसार मुझे पसंद होगी ऐसी आपकी वस्तुका आधा भाग लूंगा. इस विवाद में काफी समय वीत गया. आखिर आचार्यने कहा कि आपके दो पुत्रों में से एक को मुझको दे दें.
आपकी देनेकी प्रतिज्ञा सच्ची हो तो जिस वस्तुको मैं मांगता हूं उस को दे दें. यदि नहीं देना हो तो आप अपने घर चले जायें.
सर्वदेव ब्राह्मण आचार्य की यह मांग सुनकर किंकर्तव्यमूढ हो गया और बडा चिंतित हो कर तथा 'आपको आपकी मांग के अनुसार आधा भाग दूंगा' ऐसा कह कर अपने घर पहुंचा.
घर जाकर चिंतातुर ब्राह्मण टूटीफूटी खटिया में पडकर सो गया. जहां चिंता हो वहां निद्रा कैसे आवे ? जब बडा लडका धनपाल राजप्रासादसे लौटकर घर पर आया तब पिताको चिंतातुर देखकर बोलाः पिताजी ! मेरे
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