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कर दिया और तबसे सारे मालवे में किसी भी (श्रीपीताम्बरदर्शनम् ) पीले कपडेवाले मुनि का विहार नहीं हुआ.
जब आचार्य महेन्द्रसूरि गुजरातमें थे तब धारानगरी के श्रीसंघने धारानगरी में जैनमुनियों के खिलाफ जो कार्रवाई हुई थी वह उन्हें विदित की और मालवे में पधारने की विनंति की.
आचार्यने अपने शिष्य शोभनमुनिको अच्छी रीतिसे पढाया, लिखाया और वाचनाचार्य बना दिया. अवंती के अर्थात् धारानगरी के संघकी धारा में आनेकी विनंति सुनकर शोभनमुनिने वहां जानेका विचार किया और अपने निमित्तसे जो बखेडा हुआ है उसको उपशांत करनेका तथा अपने बडे भाई धनपालको भी प्रतिबोध करनेका संकल्प अपने गुरु को विदित किया.
बादमें श्रीमहेंद्रसूरिजीने गीतार्थ मुनियों के साथ वाचनाचार्य शोभनमुनिको धारानगरीकी तरफ विहार करने की आज्ञा दी. ____ श्री शोभनमुनि आदि मुनिमंडल अणहिल्लपुरसे ग्रामानुग्राम विहार करते करते एक दिन धारानगरी को पहुँच गए. उचित समय को देख कर एक दिन शोभनमुनिने अपने साथके मुनियों को धनपाल के घर पर भिक्षा के लिए भेजा.
मुनियोंने धनपाल के घर जाकर 'धर्मलाभ ' ऐसा कहकर भिक्षा मांगी. धनपाल की स्त्रीने कहा 'सरस्यस्ति' अर्थात् धर्मलाभ तो तालाव में है। तब शरीर पर तेलकी मालिश कर के स्नान के लिए उद्यत ऐसे धनपालने कहा कि घरमें आये हुए अर्थिको कुछ न कुछ देना चाहिए, यदि ये खाली हाथ चले जाएंगे तो बडा अधर्म होगा अतः इनको थोड़ा दहीं दो.
तब धनपाल की स्त्री उषितान्नम्-वासी-ठंडा-अन्न लाई. मुनियोंने अन्न को ले लिया, फिर वह दहीं लाई तब मुनियोंने पूछा कि यह दहीं कितने दिनका
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