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है ? तब स्त्रीने कहा कि क्या इस दहीं में जीव पडे हैं ? यह दहीं तीन दिनका है, लेना है तो ले लो अन्यथा चले जाओ.
मुनियोंने कहा कि ऐसा पूछना हमारा आचार है, इससे आप नाराज क्यों होती हैं ? यह सब वातचीत सुनकर धनपाल पंडितने कहा कि यदि आप इस दहीं में पडे हुए जीवों को बता देवें तब आपका वचन निर्दोष एवं सत्य माना जाय.
तब मुनियोंने दहीं में अलते की गोली डलवाई. तब दही का रंग बदल जाने से उस के अंदर जो छोटे छोटे जंतु उत्पन्न हो गए थे वे प्रत्यक्ष दीख पड़ने लगे. यों दहीं सफेद था और उस के अंदर उत्पन्न हुए छोटे जंतु भी दही के समान रंग के थे, अतएव नहीं दीख पडते थे। जब दही का रंग बदलने के लिए उसमें दूसरी वस्तु डलवाई तब वे जंतु दहीं में चलते से साफ साफ दिखाई देने लगे. ___महाकवि धनपाल इन जंतुओं को देख कर अचंभे में आ गया और ' दहीं कितने दिनका है ? ' इस प्रकारका मुनियों का प्रश्न समुचित ही थाऐसा विचार उनके मन में आया तथा मुनि-जैन मुनि किस कदर वा किस हद तक दया-अहिंसा-का विचार करते हैं, किसी भी छोटे मोटे जीवकी रक्षा के लिए वे कितने सावधान रहते हैं और अपनी संयमयात्रा वे इस तरह चलाते हैं जिससे किसी भी प्राणी की हिंसा न हो, अपना मन चंचल न हो, इंद्रियाँ भी अपने वश में ही रहे जिससे रागद्वेषके परिणाम धीरे धीरे क्षीण होकर समवृत्ति बनी रहे.
इस प्रकार विचार करते करते उसके मन में जैन धर्म संमत दयावृत्ति ठीक ऊँचने लगी और हिंसाप्रधान वैदिक कर्मकांड से उसका मन हटने लगा.
फिर उसने भिक्षार्थ आए हुए मुनियों को पूछा कि आप लोग इस धारानगरी में कहांसे आए हैं ? आपके गुरु कौन हैं ? और आप इधर आकर कहां ठहरे हुए हैं ?
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