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कथाकार हरिभद्र (जैन), भवभूति, वाक्पतिराज, भद्रकीर्ति अपरनाम बप्पभट्टि (जैन), यायावर राजशेखर, महेन्द्रसूरि जैन-- ( धनपालके धर्मगुरु ) रुद्र और कर्दमराज, इन सब कवियोंका सादर स्मरण किया है, उसमें कवि कालिदास का स्मरण करते हुए कवि धनपालने कवि कालिदास को ' आसन्नवर्तिना ' ऐसा विशेषण दिया है, इससे मालूम होता है कि कवि कालिदास धनपालका पूर्ववर्ती होनेपर भी आसन्नवर्ती था. धनपालके इस उल्लेखसे कालिदासके समय पर जरूर संशोधनीय दृष्टिकोण से विचार करना आवश्यक है । आसनवर्ती अर्थात् धनपालसे सो दोसौ वरस पहिले हो इतना संभवनीय है. ज्यादह पूर्ववर्ती को कोई 'आसन्नवर्ती' ऐसा विशेषण नहीं दे सकता.
१५ कवि विरचित ग्रंथ
१ पाइअलच्छी नाममाला
२ श्रीरिषभपंचाशिका - बृहट्टिप्पनिका नामकी प्राचीन जैन ग्रंथसूची में इसका नाम 'धनपालपंचाशिका' लिखा है तथा प्रभानंदसूरिने इस पर वृत्ति बनाई है ऐसा भी सूचन किया है.
३ श्री सत्यपुरीय महावीर उत्साह
४ महावीरस्तुति ( विरोधाभास अलंकार सहित ) - महावीरस्तुतिका नाम बृहद्विप्पनिकामें ‘वीरस्तव' लिखा है तथा 'निम्मलगहे ' पदसे स्तुतिका प्रारंभ बताया है और सुराचार्यने इस पर वृत्ति बनाई है ऐसा भी लिखा है.
५ तिलकमंजरी ( इस ग्रंथके ऊपर कवि के परमस्नेही श्री वादिवेतालशांतिसूरिने पंजिका बनाई है ) धनपालकी रची हुई यह कथा चंपूरूप वर्णनप्रधान है, तथा शान्त्याचार्यने इस पर टिप्पन, लघु धनपालने तिलकमंजरीसारोद्धार बनाया है ऐसा बृहट्टप्पनिका में लिखा है.
६ शोभनमुनि कृत शोभनस्तुति के ऊपर वृत्ति |
इतने ग्रंथ श्री धनपाल महाकवि के बनाए हुए विद्यमान हैं.
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