________________
___३. श्रीरामचंद्रकी तरह शोभन बडा पितृभक्त था ऐसा मालूम होता है अथवा वह भोलाभाला इतनी छोटी उम्रका लडका होगा कि जिस उम्रमें भक्ति व प्रीति विशेषतः टिकी रहती है.
४. धनपालके समयमें वैदिकपरंपरा का कर्मकांड इस प्रकार चलता
होगाः
" स्पर्शोऽमेध्यभुजां गवामघहरः वन्द्या विसंज्ञा द्रुमाः स्वर्ग छागवधात् हिनोति च पितॄन् विप्रोपभुक्ताशनम् । आप्ताः छमपराः सुराः शिखिहुतं प्रीणाति देवान् हविः स्फीतं फल्गु च वल्गु च श्रुतिगिरां को वेत्ति लीलायितम् ? ॥
__ -(प्रभावक चरित्र पृ० २३२, महेन्द्रसूरि प्रबन्ध श्लो. १३४) अपवित्र पदार्थोंको खानेवाली गौओंका स्पर्श पापहर माना जाता है, जड प वृक्ष वंद्य माने जाते हैं, बकरेकी बलि देनेसे स्वर्गप्राप्ति समझी जाती है, ब्राह्मण लोगोंका किया हुआ भोजन, जिनकी विद्यमानताका व स्थानका पता तक नहीं मालूम है ऐसे पितृलोक तक पहुंच जाता है ( मानो ब्राह्मणलोग एक तरह के पोस्ट ओफिसरूप हैं जो विना पतेके सामानको भी पहुंचा सकते हैं) अग्निमें डाला गया घी वगैरह हविष देवोंको प्रसन्न करता हैये सब अनुष्ठान वैदिक परंपरामें चल रहे हैं- वैदिक वाणीकी लीलाको कौन जान सका है ?
५. धनपालकी सत्यवादिता और निःस्पृहताः धनपाल धारानगरीके राजा भोजकी सभाका प्रमुख कवि था, राजसम्मानित था तथापि वह वडा सत्यवादी और निःस्पृह था.
देखिए:___ एक दफा जब राजा शिकारके लिए चला तब कवि धनपाल को भी साथमें ले चला. राजाने एक बडे वराहको जब एक ही बाणसे वींधा और वह वराह जब घरर घरर आवाज करता हुआ गिर पड़ा तब साथमें आए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org