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ऐसे सब स्थलोंकी यात्राको गए हुए थे, क्योंकि उक्त ' उत्साह' नामकी स्तुति में कविने स्पष्ट सूचित किया है कि “ पिक्खिवि ताव बहुत ठाम " अर्थात् इन सब स्थानोंको देखकर प्रतीत हुआ कि जैसी भगवंत महावीर की मूर्ति साचोर में है, वैसी लावण्यमयी मूर्ति और किसी जगह नहीं है ।
इस 'उत्साह' में कविने अणहिलपुर, सोरठ, सोमनाथ, चंद्रावती, श्रीमालदेशके तीर्थ देलवाडा वगैरह तीर्थोंमें तुर्कों द्वारा जो मूर्तियों का भंजन हुआ है उसका अतिस्पष्ट उल्लेख किया है । संवत् १०८१ में महम्मूद गिजनीद्वारा किये गये मूर्तिभंजन को यह उल्लेख सूचित करता है। और यह बात जिनप्रभसूरिरचित तीर्थंकल्पसे समर्थित होती है। तीर्थकल्पमें सत्यपुर तीर्थ का भी एक कल्प है.
९ धनपालकी उम्र मर्यादा
पाइअलच्छी नाममाला १०२९ में बनाई । १०८१ में जो मूर्तिभंजन हुआ धनपाल भी उल्लेख ‘उत्साह' में किया है, अतः जब पाइअलच्छी ० बनाई तब उसका की उम्र करीब बीस वरसकी मानी जाय तो भी 'उत्साह' बनाने के समय उसकी उम्रका अंदाज बहत्तर वरसका किया जा सकता है। संभव है कि 'उत्साह' बनाने के बाद दस-बीस बरस तक अधिक कविका जीवन रहा हो । तो उसकी ब्याशी अथवा बयानब्बे सालकी उम्र असंभव नहीं.
'उत्साह' में कविने अपना नाम दो दफे इस प्रकार स्पष्ट दिया है“ एकजीह धनपालु भणइ " ( एकजिह्नः धनपालो भणति ) तथा “ तइ तुट्ठइ धनपालु " ( त्वयि तुष्टे धनपाल : )
'उत्साह' जिन पन्नोमें लिखा गया है वे संवत् १३५७-५८ में लिखे गए हैं अर्थात् 'उत्साह' के पन्ने इतने प्राचीन हैं ।
१० धारामें धनपाल का पुनरागमन और अपने वतनकी प्रतिष्ठा की
दृष्टि
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