Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala View full book textPage 8
________________ जैन जाति महोदय. समय नजदीक जान अपने पदपर आर्य समुद्रसूरिको स्थापन कर आप २१ दिनका अनशन पूर्वक वैभारगिरके उपर समाधिसे नाशमान शरीरका त्याग कर स्वर्ग सिधारे । इति दूसरापाट्ट ३ आचार्य हरिदत्तसूरिके पट आर्य समुद्रसूरि महा प्रभाविक विधाओं और श्रुतज्ञानके समुद्रही थे आपके शासन कालमें भी यज्ञवादियों का प्रचार था हजारो लाखों निरापराधि पशुओंके कोमल कण्ठ पर निर्दय देत्य छरा चलाने में और धर्मका नामसे मांस मदिराकी आचरणामें ही दुनियोंकों जालमे फसा रहे थे आचार्यश्री के विशाल संख्यामें मुनि समुदाय पूर्व बंगाळ ऊडीसा पंजाब मुल्तानादि जिस २ देशमें बिहार करते थे उस २ देशमे अहिंसाका खुब प्रचार कर रहे थे इधर लोहितगणि दक्षिण करणाट तैलंग महाराष्ट्रियादि देशोंमे विहार कर अनेक राजा महाराजाओं कि राजसमामें उन पशुहिंसकोंका पराजय कर जैनधर्म का झंड़ा फरका रहेथे आपके उपासक मुनिगणकि संख्या करीवन् ५००० तक हो गइ यो. दक्षिण में अन्योन्य मत्तके आचार्यों को देख दक्षिण जनसंघ लोहित गणिको इसपद के योग्य समज आचार्य आर्यममुद्रसूरि कि सम्मति मंगवाके अच्छा दिन शुभ मुहूर्त में लोहितगणि को आचार्य पहिसे भूषित किये, जिससे दक्षिण विहारी मुनियोंकी लोहित साखा और उत्तर भरतमे विहार करनेवाले मुनियोंकी निर्ग्रन्थ समुदाय के नामसे ओलखाने लगी. दोनों भ्रमण समुदायोंने हाथमें धर्मदंड लेकर उत्तरसे दक्षिणतक जैनधर्मका इस कदर प्रचार कर दिया कि वेदान्तियों का सूर्य अस्ताचल पर चलेजानेसे नाममात्र के रह गये थे. आर्यसमुद्रसूरि का एक विदेशी नामका महा प्रमाधिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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